अगर आप किसी की बददुआ लेनी से चाहते है मुक्ति तो ये व्रत आपके लिए विशेष रूप से होगा मददगार,

नई दिल्ली : क्या आप जानते है कि कई बार हम ना चाहते हूवे भी जाने अनजाने में कुछ ऐसे काम या गलतिया कर जाते है, जिसके बारे में हमें नहीं पता होता है और फिर हम ना चाहते हूवे भी पाप के भागीदार बन जाते हैं।ऐसा ही कुछ पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा में भी बतलाया गया है। आपको बताते है कि चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी पड़ती है, उसे पापमोचिनी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।

महिमा पापमोचिनी एकादशी की

पापमोचिनी एकादशी की महिमा इस प्रकार से है कि जो मनुष्य जाने अनजाने में पाप कर्म को कमाता है, उससे वह कैसे मुक्त हो सकता है? इसके चलते लोमश ऋषि ने उन्हें एक कहानी सुनाई और उसमे यही बतलाया गया है कि कैसे चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे। और तभी वहां मंजुघोषा नामक अप्सरा आई जो ऋषि पर मोहित हो गई और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने के यत्न करने लगी।

इसके बाद ऋषि भगवान शिव की तपस्या को भूलकर अप्सरा के साथ रमण करने चले गए । किंतू जब उन्हें अपनी इस भूल का एहसास हुआ, तो उन्हें खुद पर बहूत ग्लानि हुई और क्रोध में उसे पिशाचनी होने का श्राप भी दे बैठे।

जिसके चलते अप्सरा इससे परेशान हो गई और इस श्राप से मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगी। इसी समय देवर्षि नारद वहां आए और अप्सरा एवं ऋषि दोनों को पाप से मुक्ति के लिए पापमोचनी एकादशी का व्रत करने की सलाह उनको दी।

नारद द्वारा बताए गए विधि-विधान से दोनों ने पापमोचनी एकादशी का व्रत किया, और इसके चलते वह पाप मुक्त हो गए।

पापमोचिनी एकादशी व्रत को करने की पूजा-विधि

जैसा कि हम सभी जानते है कि इस दिन भगवान विष्‍णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है।

सुबह – सुबह स्‍नान के बाद आप स्‍वच्‍छ वस्‍त्र को धारण करें और उसी के साथ – साथ लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्‍णु की मूर्ति कि स्थापना करे ।

फिर दाएं हाथ में चंदन और फूल लेकर एकादशी का व्रत करने का संकल्‍प करें।

उसके बाद भगवान को पीले फल, पीले फूल और पीली मिष्‍ठान का भोग लगाएं।

और इसके बाद यदि आप सक्षम हों तो विष्‍णु सहस्‍त्रनाम का पाठ करें और भगवान को जनेऊ अर्पित करें।

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