अप्सरा साधना के क्या-क्या दुष्परिणाम होते हैं? जानिए

अप्सरा साधना वो शक्ति है जो प्रेम का वास्तविक रूप साधक को दिखा देती हैं । मन व शरीर में गुलाब जैसी खुशबू सुगंध हजारों फूलों जैसा सुगंध का अहसास होने लगता है केवल एक जो वास्तविक प्रेमिका है उसी से अप्सरा जैसा प्रेम व स्वर्ग की तरह तृप्ति वह प्रेम अद्भुत आनंद खुशबू कोमालता सरलता मधुलता कोमलता दोनों का आनंद एहसास होने लगता है दोनों में ऐसा शक्ति आ जाता है की गजब की आनंद एहसास होने लगता है

अप्सरा साधना : हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार अप्सरा देवलोक में रहने वाली अनुपम, अति सुंदर, अनेक कलाओं में दक्ष, तेजस्वी और अलौकिक दिव्य स्त्री है। वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है कि देवी, परी, अप्सरा, यक्षिणी, इन्द्राणी और पिशाचिनी आदि कई प्रकार की स्त्रियां हुआ करती थीं। उनमें अप्सराओं को सबसे सुंदर और जादुई शक्ति से संपन्न माना जाता है।

अप्सरा से सम्भोग का वचन न ले नही तो हानिकारक सिद्ध हो सकता है साधक के लिये। पत्नी रूप में भी इसको सिद्ध कर सकते है। अप्सरा सिद्ध साधक के शरीर से हमेशा सुगन्ध आती रहती है मानो उसने कोई इत्र लगा रखा हो। साधक या साधिका के शरीर मे बहुत तेज आता है,नवयौवन आता रहता है,बुढ़ापा पास नही आता है

अप्सरा साधना : माना जाता है कि अप्सराएं गुलाब, चमेली, रजनीगंधा, हरसिंगार और रातरानी की गंध पसंद करती है। वे बहुत सुंदर और लगभग 16-17 वर्ष की उम्र समान दिखाई देती है। अप्सरा साधना के दौरान साधक को अपनी यौन भावनाओं पर संयम रखना होता है अन्यथा साधना नष्ट हो सकती है। संकल्प और मंत्र के साथ जब साधना संपन्न होती है तो अप्सरा प्रकट होती है तब साधन उसे गुलाब के साथ ही इत्र भेंट करता है। उसे फिर दूध से बनी मिठाई, पान आदि भेंट दिया जाता है और फिर उससे जीवन भर साथ रहने का वचन लिया जाता है। ये चमत्कारिक शक्तियों से संपन्न अप्सरा आपकी जिंदगी को सुंदर बनाने की क्षमता रखती है।

कितनी हैं अप्सराएं : शास्त्रों के अनुसार देवराज इन्द्र के स्वर्ग में 11 अप्सराएं प्रमुख सेविका थीं। ये 11 अप्सराएं हैं- कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रम्भा, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्तमा। इन सभी अप्सराओं की प्रधान अप्सरा रम्भा थी।

अलग-अलग मान्यताओं में अप्सराओं की संख्या 108 से लेकर 1008 तक बताई गई है। कुछ नाम और- अम्बिका, अलम्वुषा, अनावद्या, अनुचना, अरुणा, असिता, बुदबुदा, चन्द्रज्योत्सना, देवी, घृताची, गुनमुख्या, गुनुवरा, हर्षा, इन्द्रलक्ष्मी, काम्या, कर्णिका, केशिनी, क्षेमा, लता, लक्ष्मना, मनोरमा, मारिची, मिश्रास्थला, मृगाक्षी, नाभिदर्शना, पूर्वचिट्टी, पुष्पदेहा, रक्षिता, ऋतुशला, साहजन्या, समीची, सौरभेदी, शारद्वती, शुचिका, सोमी, सुवाहु, सुगंधा, सुप्रिया, सुरजा, सुरसा, सुराता, उमलोचा आदि।

कुछ ऐसे प्रमुख बिंदुओं को को हम ध्यान रखकर साधना करे तो हमे इसके दुष्परिणाम से बच सकते है -:

1.गुरु का स्थान – पहली बात किसी भी तरह कि साधना मे अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान गुरु का होता है क्यूंकि बिना गुरु के साधना मे आपका मार्गदर्शन कैसे हो सकता है। तथा साधना कि सही विधि भी उन्ही से प्राप्त होता है। इसलिए अगर हम बिना गुरु के साधना को प्रारंभ करते है तो इसमें होने वाली त्रुटि का जिम्मेवार सिर्फ और सिर्फ हम होंगे।

  1. मानसिक संयम – अप्सराएं बहुत मृदुल परन्तु बुद्धिमान होती है इनके साधना को हमे अपने प्रेम भाव से करना चाहिए। इनकी साधना को करते समय हमे अपने मन पर पूर्ण रूप से नियंत्रण होना चाहिए। ज़रा सा भी गलत विचार हमारे साधना खंडित कर सकती है।
  2. सात्विक जीवन शैली – इस प्रकार कि साधना हम मे हमे बहुत ही सात्विक जीवनचर्या को जीना पड़ता है। मांस- मदिरा इत्यादि व्यसनों से दूर रहना पड़ता है, क्योंकि ये शक्तियां पूर्ण सात्विक होती है।
  3. पूर्ण समर्पण भाव एवम् प्रेम – ये अप्सराएं प्रेम से पूरिट और मृदुल स्वभाव कि होती है, इसलिए इनकी साधना को हम पूर्ण प्रेम एवम् विश्वास से करना चाहिए। कोई साधना बिना विश्वास और पूर्ण समर्पण के सिद्ध नहीं होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *