अमेरिका की शर्मनाक हार की कहानी बयां करता है वियतनाम युद्ध

वियतनाम युद्ध अमेरिकी सैनिकों के लिए मौत का फंदा बन चुका था। अमेरिका को इस युद्ध में अपने करीब 58,000 सैनिकों को गंवाना पड़ा।

अमेरिका ने कई जंगें लड़ी हैं और कई जीती हैं। लेकिन कुछ युद्ध उसके लिए गले की हड्डी बन गए थे। न निगलते बन रहा था और न उगलते बन रहा था। ऐसा ही एक युद्ध वियतनाम का युद्ध है जहां अमेरिका को अपने करीब 58,000 सैनिकों को खोना पड़ा। आइए इस युद्ध के बारे में सबकुछ जानते हैं…

वियतनाम युद्ध की जड़
वियतनाम पर 19वीं सदी से फ्रांस का कब्जा रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान ने वियतनाम पर हमला किया। अब वियतनाम को एक साथ दो मोर्चे पर लड़ना था। एक तरफ उसे जापान की फौज से लड़ना था तो दूसरी तरफ उसे फ्रांस के औपनिवेशिक शासन को भी उखाड़ फेंकना था। दोनों काम को एक साथ अंजाम देने के लिए हो चो मिन्ह ने वियत मिन्ह या वियतनाम की आजादी के लिए लीग की स्थापना की। हो चो मिन्ह वियतनाम के राजनेता थे जो चीनी और सोवियत साम्यवाद से काफी प्रभावित थे। दूसरे विश्व युद्ध में अपनी हार के बाद जापान की सेना वियतनाम से निकल गई। जापान के निकलने से वियतनाम पर सम्राट बाओ डाई का कब्जा हो गया जिन्होंने फ्रांस से पढ़ाई की थी और उनको फ्रांस का समर्थन प्राप्त था। यानी वियतनाम पर फ्रांस की कठपुतली सरकार का शासन था। हो को वियतनाम पर कब्जा करने का मौका दिखा। उनकी वियत मिन्ह सेना ने हनोई के उत्तरी शहर पर कब्जा कर लिया और उसे लोकतांत्रिक गणराज्य वियतनाम (डीआरवी) करार दिया। हो चो मिन्ह को उसका राष्ट्रपति बनाया गया।

फ्रांस की मदद से सम्राट बाओ ने उस क्षेत्र को फिर से अपने कब्जे में करने के लिए मुहिम छेड़ा। जुलाई 1949 में उन्होंने वियतनाम राज्य का गठन किया। साइगोन को उसकी राजधानी बनाई गई। दोनों चाहते थे कि वियतनाम का एकीकरण हो। लेकिन सिस्टम को लेकर उनके बीच मतभेद था। हो और उनके समर्थक चाहते थे कि उनके देश को अन्य कम्यूनिस्ट देशों के मॉडल पर विकसित किया जाए। वहीं बाओ और अन्य लोगों की चाहत थी कि वियतनाम पश्चिमी देशों का मॉडल अपनाए।

कब शुरू हुआ वियतनाम का युद्ध
वियतनाम युद्ध में अमेरिका की सक्रिय भागीदारी 1954 में शुरू हुई। हो की साम्यवादी सेना का उत्तरी वियतनाम पर कब्जा होने के बाद उत्तरी और दक्षिणी भाग की सेनाओं के बीच युद्ध शुरू हो गया। मई 1954 में उनके बीच निर्णायक युद्ध हुआ। उसमें वियत मिन्ह सेना जीत गई। युद्ध में फ्रांस की हार के साथ ही वियतनाम में फ्रांस के औपनिवेशिक शासन का अंत हुआ।

जुलाई 1954 में जिनीवा कॉन्फ्रेंस में एक संधि हुई जिसमें वियतनाम को दो भागों में बांट दिया गया। हो के कब्जे में उत्तरी वियतनाम रहा जबकि बाओ के कब्जे में दक्षिणी वियतनाम। संधि में प्रावधान था कि देश का फिर से एकीकरण के लिए 1956 में चुनाव होगा।

1955 में नो दिन डिएम नाम के राजनीतिज्ञ ने सम्राट बाओ का तख्तापलट कर दिया। वह वियतनाम गणराज्य की सरकार (जीवीएन) के राष्ट्रपति बन गए। उस दौरान जीवीएन को दक्षिण वियतनाम के नाम से जाना जाता था।

इसीबीच दुनिया भर में शीत युद्ध जोर पकड़ने लगा था। अमेरिका ने शीत युद्ध के मद्देनजर सोवियत संघ के सहयोगियों के खिलाफ अपनी पॉलिसी को काफी सख्त कर दिया था। 1955 में अमेरिकी राष्ट्रपति ड्विट डी.आइजनहावर ने डिएम और दक्षिण वियतनाम को पुरजोर सहायता करने की कसम खाई।

दक्षिण वियतनाम की सरकार को अमेरिकी सेना और सीआईए ने हथियार मुहैया कराए। दक्षिण वियतनाम की सेना को भी प्रशिक्षण दिया गया। अमेरिका ने वहां अपने सैनिक भेज दिए। इसके बाद डिएम की सेना ने दक्षिण वियतनाम में वियत मिन्ह के समर्थकों पर शिकंजा कसना शुरू किया। करीब 1 लाख लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। उनमें से कई को बुरी तरह टॉर्चर किया गया और प्रताड़ना दी गई। दक्षिण वियतनाम की सरकार वियत मिन्ह के समर्थकों को वियत कॉन्ग या वियतनाम का कम्यूनिस्ट कहती थी। 1957 के बाद वियत कॉन्ग और डिएम के अन्य विरोधियों ने सरकारी अधिकारियों एवं अन्य लक्ष्यों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। 1959 तक दक्षिणी वियतनाम की सेना के साथ उनकी सशस्त्र लड़ाई शुरू हो गई।

दिसंबर 1960 में डिएम के विरोधियों ने उसके दमनकारी शासन का विरोध करने के लिए राष्ट्रीय मुक्ति मोर्च (एनएलएफ) का गठन किया। उसमें डिएम के विरोधी कम्यूनिस्ट और गैर कम्यूनिस्ट दोनों शामिल थे। एनएलएफ ने खुद को स्वायत्त घोषित किया लेकिन वॉशिंगटन को लगता था कि एनएलएफ उत्तरी वियतनाम की कठपुतली है। वॉशिंगटन ने इसके लिए दक्षिण वियतनाम का सर्वे कराया। रिपोर्ट में वियत कॉन्ग के खतरे से निपटने के लिए डिएम को सैन्य, आर्थिक और तकनीकी सहायता देने का सुझाव दिया गया। वैसे तो 1954 में ही अमेरिकी सैनिक वियतनम में पहुंच गए थे लेकिन उस समय उनकी तादाद 800 से कम ही थी। 1962 तक उनकी तादाद 9,000 हो गई।

टोंकिन की खाड़ी में अमेरिकी पोतों पर हमला
नवंबर 1963 में डिएम के जनरलों ने बगावत कर दी। डिएम की सरकार गिरा दी गई। उसकी और उसके भाई की हत्या कर दी गई। ऊधर उससे तीन हफ्ते पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ.केनेडी की हत्या कर दी गई। दक्षिण वियतनाम में बदल रही परिस्थिति ने केनेडी के उत्तराधिकारी लिंडन बी.जॉनसन को वियतनम में अमेरिकी सैन्य और आर्थिक सहयोग बढ़ाने की जरूरत महसूस हुई।

अगस्त 1964 में अमेरिका के दो जहाजों पर टोंकिन की खाड़ी में हमला हुआ। इसके बाद अमेरिका ने उत्तरी वियतनाम में बदले की कार्रवाई के तौर पर बमबारी का आदेश दिया। अगले साल अमेरिकी जहाजों ने वियतनाम में बमबारी शुरू कर दी। वियतनाम में अमेरिका ने अपने इस ऑपरेशन का नाम ऑपरेशन थंडर रखा। मार्च 1965 में जॉनसन ने वियतनाम के युद्ध में और सैनिकों को भेजने का फैसला लिया। जॉनसन ने वियतनाम में सैनिकों की संख्या बढ़ाकर करीब 4.5 लाख कर दी। वियतनाम में अमेरिका की ओर से खूब बमबारी होने लगी। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान में जितने बम गिराए थे, उससे चार गुना ज्यादा वियतनाम में गिराए गए।

अपने वादे से मुकरा अमेरिका
जिनीवा संधि के समय अमेरिका ने वियतनाम में 1956 में चुनाव का वादा किया था। लेकिन बाद में उससे मुकर गया जिससे जॉनसन की विश्वसनीयता घटी। ऊधर चीन और सोवियत संघ ने उत्तरी वियतनाम की मदद नाटकीय तौर पर बढ़ा दी। वियतनाम के लोग अपनी सरकार के साथ खड़े थे। वे देश के लिए मरने-मारने को तैयार थे। वियतनाम की सेना के साथ मिलकर वहां के नागरिक भी अमेरिकी सैनिकों को चुन-चुनकर मारने लगे। साल 1968 तक अमेरिकी सैनिकों का हौसला जवाब दे चुका था। वे जीत की उम्मीद छोड़ चुके थे। वे किसी तरह अपनी जान बचाने में जुट गए थे। अमेरिका ने उत्तरी वियतनाम के साथ बातचीत शुरू की लेकिन 1972 तक वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे। कम्यूनिस्टों ने एक बार फिर जोरदार हमला किया। फिर अमेरिका ने मई और जून 1972 में उत्तरी वियतनाम में खूब बमबारी की। उत्तरी वियतनाम की ओर से भी बराबर बदले की कार्रवाई की गई। अमेरिका ने भले ही खूब बमबारी की लेकिन जमीनी स्तर उनके सैनिकों का हौसला टूट चुका था। बड़ी संख्या में सैनिकों के मारे जाने से अमेरिका पर अपने सैनिकों को वापस बुलाने का दबाव था।

युद्ध का अंत
आखिरकार जनवरी 1973 में अमेरिका और उत्तरी वियतनाम के बीच एक शांति संधि हुई। इस संधि के साथ ही अमेरिका और वियतनाम के बीच युद्ध का अंत हो गया। लेकिन उत्तरी और दक्षिण वियतनाम के बीच लड़ाई जारी रही। 30 अप्रैल, 1975 को डीआरवी सेना ने साइगोन पर कब्जा कर लिया और उसका नाम हो चो मिन्ह शहर कर दिया। 1976 में डीआरवी ने वियतनाम का एकीकरण किया और उसका नाम समाजवादी गणराज्य वियतनाम हो गया।

अमेरिका और वियतनाम का नुकसान
युद्ध में दोनों पक्षों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। वियतनाम के करीब 20 लाख लोगों को मारे जाने और 30 लाख के करीब लोगों को घायल होने का अनुमान है। करीब 1.2 करोड़ लोगों ने दूसरे देशों में शरण लिया। अमेरिका को अरबों डॉलर पैसा खर्च करना पड़ा और उसके करीब 58,000 सैनिक मारे गए।

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