अशोक ने भेरी घोष को त्याग कर धम्म घोष को क्यों अपनाया था?

कलिंग युद्ध में भारी नरसंहार के पश्चात् अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। कालांतर में अशोक की आंतरिक एवं विदेश नीति बौद्ध धर्म से प्रेरित हुई। इसी कारण समाज में विभिन्न वर्गों के मध्य धर्म प्रचार करने के लिये धम्म महामात्रों की बहाली के साथ साम्राज्य के सुदूर भागों में भी अधिकारियों की नियुक्ति की गई। बुद्ध के उपदेशों से प्रेरित होकर ही अशोक ने ‘मेरी घोष’ की जगह ‘धम्म घोष’ की नीति अपनाई।

अशोक द्वारा अपनाई गई धर्म प्रचार व धम्म घोष की यह नीति केवल सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक व नैतिक उद्देश्यों से ही प्रेरित नहीं थी, बल्कि इसका उपयोग अशोक द्वारा राजनीतिक अभ्युदय के उपकरण के रूप में भी किया गया, जैसे-

साम्राज्य के सुदूर भागों, जैसे- मध्य एशिया और श्रीलंका में अशोक द्वारा धर्म प्रचारक भेजना उसके सांस्कृतिक विजय की नीति का भाग था। प्रबुद्ध शासक के रूप में अशोक ने प्रचार द्वारा राजनैतिक प्रभाव के क्षेत्र में वृद्धि की।

अशोक ने साम्राज्य को सुदृढ़ करने के लिये धर्म का सहारा लिया। इसके लिये बुद्ध के उपदेशों से प्रेरित नैतिक नियमों (धम्म) को अपनाने के लिये प्रजा को प्रेरित किया। उसकी इस नीति की सफलता से कई समुदायों ने जीव हिंसा को त्यागकर स्थिरकारी होकर कृषक का जीवन अपना लिया।

धर्म का ही सहारा लेकर अशोक ने लोगों को ‘जियो और जीने दो’ का पाठ पढ़ाया तथा जीवों के प्रति दया और बाधवों के प्रति सद्व्यवहार की सीख दी। इस प्रकार उसने सहिष्णुता के आधार पर तत्कालीन समाज व्यवस्था को बनाए रखने का प्रयास किया।

अशोक का धर्म संकुचित नहीं था। समाज को सुव्यवस्थित बनाए रखना इसका व्यापक लक्ष्य था। उसका उपदेश था कि लोग माता-पिता की आज्ञा माने, ब्राह्मणों और बौद्ध भिक्षुओं का आदर करें और दासों तथा सेवकों के प्रति दया करें। ये उपदेश ब्राह्मण तथा बौद्ध दोनों धर्मों में पाए जाते हैं।

अशोक ने देश में राजनीतिक एकता स्थापित की तथा संपूर्ण राज्य को एक धर्म, एक भाषा और एक लिपि के सूत्र में बाँध दिया। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये निर्मित अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी में है, पर देश के एकीकरण में अभिलेखों के निर्माण में ब्राह्मी, खरोष्ठी, यूनानी, आरमाइक सभी लिपियों का सम्मान किया।

साम्राज्य के सुदूर भागों में धर्म प्रचार के लिये अधिकारियों की नियुक्ति से प्रशासन कार्य में लाभ हुआ और साथ ही विकसित गंगा के मैदान और पिछड़े दूरवर्ती प्रदेशों के बीच सांस्कृतिक संपर्क में वृद्धि हुई। नैतिक संस्कृति, जो साम्राज्य के मध्यवर्ती इलाकों की विशिष्टता थी, कलिंग निचले दक्कन और उत्तरी बंगाल में भी फैल गई।

उसने प्रजा पर बौद्ध धर्म लादने की चेष्टा नहीं की, प्रत्युत उसने हर संप्रदाय के लिये दान दिये। इससे विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के समन्वय से साम्राज्य का विकास हुआ।

इस प्रकार अशोक ने धर्म को राजनीतिक अभ्युदय के उपकरण के रूप में प्रयोग किया। यह सोचना गलत होगा कि कलिंग युद्ध ने अशोक को नितांत शांतिवादी बना दिया। प्रत्युत, वह अपने साम्राज्य को सुदृढ़ करने की व्यावहारिक नीति पर चला। उदाहरणस्वरूप उसने विजय के पश्चात् कलिंग को अपने पास रखा, विशाल सेना को विघटित नहीं किया गया और ‘राजूक’ अधिकारियों को प्रजा को दंड देने का अधिकार भी सौंपा गया।

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