आपके जीवन में अभी तक सबसे डरावना पल क्या था? जानिए
समय – 5 नवम्बर 1988
स्थान – श्रीलंका और मालदीव के बीच अथाह सागर
मालदीव सरकार का तख्ता पलट करने के असफल प्रयास के बाद बच कर भाग रहे आतंकवादियों के समूह ने एक व्यापारिक जहाज का अपहरण कर लिया।
आतंकवादियों ने सुरक्षा कवच के तौर पर कुछ मालदीव के नागरिकों को भी जहाज पर बंधक बनाकर रखा था। जिसमें एक मालदीव का मंत्री और उसकी पत्नी भी शामिल थे।
चेतावनी देने के बाद भी वह जहाज आगे बढ़ रहा था तो हमारे जहाज के कप्तान को गोलाबारी का सहारा लेना पड़ा। गोलाबारी के कारण व्यापारिक जहाज डूबने लगा तो आतंकवादियों ने समर्पण कर दिया।
अब उस खुले सागर में, डूबते जहाज के कर्मचारी, बंधक और आतंकवादियों को जिन्दा बचाने की चुनौती सामने थी। कप्तान ने दो नावों को बचाव अभियान के लिए जहाज से नीचे उतारने की आदेश दिया।
डूबते जहाज से जो लोग लाइफ जैकेट पहनकर पानी में कूद गए थे, उन्हें बड़ी नाव में बैठा लिया परन्तु कुछ लोगों के पास लाइफ जैकेट नहीं थे और वे पानी में कूदने से घबरा रहे थे।
जब लग रहा था कि जहाज कुछ ही समय में समुद्र की अथाह गहराइयों में समा जाएगा और बचे हुए लोग भी उसके साथ ही जल समाधि ले लेंगे, ठीक उसी समय गोताखोर हरफूल सिंह अपनी नाव से पानी में कूदता है और पलक झपकते ही डूबते जहाज पर चढ़ जाता है। अपने साथ कुछ लाइफ जैकेट्स भी ले जाता है।
बड़ी नाव पर खड़ा एक अधिकारी जोर-जोर से चिल्लाता है। गला फाड़ कर चिल्लाता है। गन्दी गन्दी गालियां देता है। Idiot, bastard, rascal और न जाने क्या-क्या। वह अपने एक कनिष्ठ को मौत के मुँह में जाने से नहीं रोक पा रहा था।
जहाज 80% से ज्यादा डूब चूका था। डूबते जहाज का अग्रिम भाग ऊपर की ओर उठ गया था लेकिन हरफूल सिंह अब भी लोगों को लाइफ जैकेट पहनाकर, जहाज से नीचे पानी में फेंक रहा था।
जब अंतिम दो लोगों को पानी में फेंककर वह स्वयं पानी में कूदा तो लगा कि शायद नहीं बच पाएगा।
जहाज एक जोर के धमाके के साथ समुद्र में समा गया।
करीब दो मिनट तक सांसे गले में अटकी रही। हम दूर एक नाव पर खड़े, डूबते जहाज के कारण पानी में मची उथल-पुथल की ओर आस भरी निगाहों से देख रहे थे।
तभी पानी के नीचे से निकलता हुआ, पीले रंग का लाइफ जैकेट पहने, हरफूल सिंह दिखाया दिया।
मेरे लिए जीवन का वह सबसे डरावना मंजर था।
इसलिए नहीं कि मेरे स्वयं के जीवन को कोई खतरा था, बल्कि इसलिए कि हमें जिन लोगों को बचाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, उन लोगों की जान बचाने में पसीने छुट रहे थे।