इतिहास में जानवरों की वफादारी के प्रमुख उदाहरण कौनसे हैं? जानिए

सन 1210 क़ुतुबडदिन ऐबक कि मृत्यु कैसे हुयी. मेवाड़ के राणा पृथ्वीराज चौहान के साथ तराइन कि दूसरी लड़ाई लड़े और शहीद हो गए. उनका घोड़ा शुभ्रक भी कैद कर लिया गया. इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने लिए रखा. लेकिन जैसे ही कुतुबुद्फीन ऐबक ने इस घोड़े पर सवारी लि इसने उसे पटक कर गिरा दिया और अपनी अगली टांगो से उस पर तब तक आघात किया ज़ब तक मर नहि गया. तुर्कीओं ने घोड़े को पकड़ कर उसे मरना चाहा लेकिन तब तक घोड़ा नौ दो ग्यारह हो गया और दौड़ता हुआ मेवाड़ आ गया तथा अपने राणा के स्थान पर घुड़साल में खड़ा हो गया. राणा कारण सिंह को इस तरह श्रद्धांजलि दी घोड़े शुभ्रक ने.

इसी तरह मेवाड़ के महाराणा प्रताप और हल्दीघाटी में अकवर से मानसिंह के नेतृत्व में हुए युद्ध को कौन नहि जनता. इसमें मेवाड़ के दो स्वामिभक्त पशु एक घोड़ा चेतक और दूसरा हाथी रामप्रसाद कि स्वामिभक्ति ने मुग़लों को दांतों तले ऊँगली दबाने को मज़बूर किया. घोड़ा चैतक ने तो राणा को हर मुसीबत से बचाया. यिध में चेतक ने अनेकों हाथी घोड़ो को हराया और बहुत फुर्ती से काम किया. उसकी गति इतनी द्रुत थी कि उसे एक स्थान पर किसी ने देखा ही नहि बस कभी इधर कभी उधर. कभी इसे मारा कभी उसे मारा.

भारी भरकम शरीर वाले और विशाल अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित राणा ने मानसिंह पर आक्रमण कर उसके पिलवान को मर दिया और मानसिंह कैसे भी जान बचा गया. इसी तरह राणा ने अपने एक ही बार से बिशालके मुग़ल बहादुर खान को घोड़े सहित काट दिया विच से चिर दिया. अंत समय ज़ब राणा घिर गए तो उनको लेकर दौड़ गया और तीस पेंतीस फिट चौड़े नाले को छलाँगकर राणा को सुरक्षित कर स्वयं बलिदान हो गया. इसी प्रकार विशालकाय रामप्रसाद ने मानसिंह कि फ़ौज के अनेक हाथियों और जवानों को मर दिया.

मुग़लोने उसे काबू करने के लिए अलग रणनीति बनाकर चारो तरफ से अनेक हाथियों से घेर लिया और अंत में पकड़ा गया. अकबर ने पहले हाथी को खिलाया पिलाया लेकिन हाथी ने पकड़े जाने पर खाना पीना बंद कर दिया और अकबर को सवारी नहि दी और भूख हड़ताल में मर गया. इससे अकबर बहुत निराश हुआ और उसने कहा कि ज़िस राणा का हाथी इतना स्वामिभक्त है जिसने मुझें न शीश झुकाया न सवारी दी और मेवाड़ के लिए जान डे दी. ऐसे महाराणा को में कैसे झुका पाउँगा.

गुरु गोविन्द सिंह के पास एक वजह था जो गुरु के आदेश पालन करता था. अलाउडफिन खिलजी भी बाज रखता था. उलुग खान और अलाउडफिन के बाज एक बार आपस में एक शिकार के लिए भीड़ गए और उलुग खान का बाज जोत गया तो अलाउडफिन ने क्रोध में सारे उलुग के सम्वन्धियों मंगोलों जो मंगोलपुरी दिल्ली में अलग बस्ती बनाकर रहते थे,को मरवा दिया और उलुग खान भाग कर देवगिरि में शरण लिया राजा हरपलदेव के यहां. इसका बदला अलाउडदीन ने मालिक काफूर को आक्रमण कर ने के लिए भेजकर और राजा तथा उलुग खान को मरवाकर लिया.

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