एक अनोखा मंदिर जिसमे भोलेनाथ पूरे 12 महीने रहते हैं जलमग्न,जिसके दर्शन करने आते हैं दूर-दूर से लोग
यूं तो पूरे भारत में ही भगवान शिव के मंदिर मौजूद हैं और विशेष महत्व भी रखते हैं और जिनके बारे में जानकर श्रद्धालु हैरान रह जाते हैं, पर क्या आपको पता है भारत में एक ऐसी जगह भी है जहाँ भगवान शिव सदैव जलमग्न रहते हैं। लेकिन यह सच है। मध्य प्रदेश के देवास के चापड़ा में एक ऐसा अनूठा मंदिर है, जिसमें भगवान शिव 12 महीने जलमग्न रहते हैं। भोले के भक्त पानी के अंदर से ही उनकी आराधना करते हैं। सावन माह के दौरान भगवान शिव की विशेष अनुकंपा प्राप्त करने के लिए भक्त पूरी श्रद्धा से पूजा करते हैं। कहते हैं इस माह में शिव का रुद्राभिषेक करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। इसलिए इस महीने शिव भक्त बड़ी संख्या में रुद्राभिषेक करते हैं। कुछ श्रद्धालु पूरे सावन हर दिन शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।भारत में भगवान शिव के अनेक ऐसे मंदिर हैं,। कहा जाता है कि दुनिया में ऐसे तीन ही मंदिर थे, जिनमें से अब एक ही जीवंत स्थिति में है। यहां सावन मास में रुद्राभिषेक किया जाता है। वैसे तो यहां लोगों का दर्शनार्थ आना-जाना रहता है, लेकिन सावन के महीने में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ जाती है। आइए जानते हैं, इस अनोखे मंदिर की कहानी और सावन में इसके दर्शन का महत्व।
इस मंदिर का नाम चंद्रकेश्वर मंदिर है और यह इंदौर से 65 किलोमीटर दूर इंदौर-बैतूल राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। इंदौर, मध्य प्रदेश से 65 किमी की दूरी पर देवास के चापड़ा में चंद्रकेश्वर मंदिर स्थित है, जो कि इंदौर-बैतूल राष्ट्रीय राजमार्ग से लगी हुयी जगह है | चूँकि यह जगह चारो तरफ से सतपुड़ा की पहाड़ियों व जंगलो से घिरी हुयी है, अत: यहाँ का वातावरण यहाँ आने वालों के दिल को लुभा जाता है | साल भर यहाँ आने वाले भक्तो का ताँता लगा रहता है | प्राकृतिक सुंदरता से सराबोर इस मंदिर में हमेशा भक्तों की भीड़ रहती है। धार्मिक मान्यता है कि मंदिर में स्थापित शिवलिंग करीब 3 हजार साल पुराना है। यहां पर मुख्य मंदिर के साथ राम दरबार और हनुमानजी का मंदिर भी है।
मंदिर के समीप ही चंद्रकेश्वर नदी बहती है। मंदिर के पास ही एक झरना है। इसमें स्नानकर लोग भगवान की पूजा-अर्चना करते हैं। यहां चार गुफाएं भी हैं। इनके बारे में बताया जाता है यह करीब 500 साल पुरानी हैं। मुख्य मंदिर से लगा घना वटवृक्ष है और पास से ही चंद्रकेश्वर नदी गुजरती है, जो आगे जाकर चंद्रकेश्वर डैम (बांध) में मिलती है।
हालांकि मंदिर की स्थापना से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, औषधि रूपी च्यवनप्राश को विकसित करने वाले च्यवन ऋषि ने इस चंद्रकेश्वर मंदिर की स्थापना की थी। स्वयं माता नर्मदा यहां प्रकट हुई थीं। इस तीर्थस्थली का उल्लेख भागवत पुराण में भी मिलता है। तभी से यहां एक वटवृक्ष से जलधारा निकलती है, जिससे शिवलिंग जलमग्न रहता है। ऐसा कहा जाता है कि च्यवन ऋषि ने इस भूमि पर तप किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं मां नर्मदा ने प्रकट होकर दर्शन दिए थे। ‘इतनी ही नहीं च्यवन ऋषि के बाद भी कई ऋषियों ने यहाँ तप किया था, जिनमें सप्त ऋषि प्रमुख थे । चूँकि सप्त ऋषियों ने भी यहाँ पर तप किया था अत: यहाँ पर उनके नाम का भी एक कुंड मौजूद है, जिसमे स्नान करने से इन्सान को सभी पापों से मुक्ति प्राप्त होती है |
देखने लायक ये है जगह – मंदिर के पास कई दर्शनीय और ऐतिहासिक स्थल हैं। यहां परमार और प्रतिहार काल की कई अद्भुत प्रस्तरशिल्प पाए जाते हैं। मंदिर के पास ही एक ही पत्थर पर उकेरी गई प्रतिहार कालीन दुर्लभ प्रतिमा है। कहते हैं ये प्रतिम सैकड़ों वर्ष पुरानी है- यहां कुछ गुफा और सदियों पुराने किले के अवशेष के अलावा श्रीविष्णु गोशाला श्रीराम मंदिर, अंबे माता मंदिर, हनुमान मंदिर मौजूद हैं।