करवा चौथ के व्रत के लिए सुबह-सुबह जो सरगी सास द्वारा दी जाती है उसमें क्या-क्या होता है?

करवा चौथ, कार्तिक मास की चतुर्थी को मनाया जाता है विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए यह व्रत करती हैं। इस दिन व्रत की सुबह को सरगी खाई जाती है जो सास की तरफ से होती है अगर किसी की सास नहीं होती तो जिठानी या ननंद की तरफ से होती है।

सरगी में कपड़े (optional), श्रृंगार का सामान, मेहंदी, मठरी, दूध फेनी, ड्राई फ्रूट, नमकीन, पतासे,फल और इच्छा के अनुसार मनपसंद खाने का सामान होता है।

इस दिन औरतें अपने सुहाग के लिए और कुमारी कन्याएं अच्छे पति के लिए बिना जल और भोजन के इस व्रत को करती हैं।

शाम के समय करवा माता की पूजा की जाती है। सब महिलाएं पूरा श्रृंगार कर अपनी-अपनी थालियां और करवे लेकर माता करवा माता जी की पूजा करती हैं पंजाब में थालियों को एक दूसरे के साथ बदल कर घुमाया जाता है। पांच करवा चौथ से संबंधित कहानियां की जाती हैं।

करवा एक किस्म का लोटा ही होता है जिसमें जल निकले के लिए मुँह बना होता है। पूजा के दौरान माता जी पर जल चढ़ाया जाता है बाद में करवे के जल से ही चाँद का अभिषेक किया जाता है।

बहुत सारे राज्यों में थालियों नहीं घुमाते सीधे माता जी की पूजा की जाती है।

रात में छलनी में देखकर चांद को जल समर्पित किया जाता है चाँद को दीपक, बताशे और धूप अगरबत्ती से पूजा की जाती है फिर पति के हाथ से जल ग्रहण कर भोजन किया जाता है।

पंजाब में चाँद की पूजा के बाद थाली में रखा ड्राई फ्रूट और कपड़े उपहार स्वरूप सासु माँ को दिया जाता है और आशीर्वाद लिया जाता है।

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