क्या आप शादी की 9 खास रस्में पूरे विवरण के साथ बता सकते हैं?

शादी को हमारी संस्कृति में जीवन का सबसे बड़ा उत्सव माना गया है। ऐसे में इसे जुड़े रस्म भी बेहद खास और रोचक होते हैं। चलिए एक नजर डालते हैं शादी की ऐसी ही कुछ अहम 9 रस्मों पर जिसके बिना शादी को अधूरा माना जाता है।

मेहंदी को सुहाग की निशानी माना जाता है। शादी की रस्मों की शुरूआत दुल्हन को मेंहदी लगा कर की जाती है। माना जाता है कि मेंहदी का रंग जितना गाढ़ा चढ़ता है तो दुल्हन को अपने पति से उतना ही अधिक प्यार मिलता है।

शादी में दुल्हा-दुल्हन को हल्दी सगुन के तौर पर लगाई जाती है। शादी से एक दिन पहले या शादी के दिन सुबह में हल्दी की रस्म होती है,जिसमें महिलाओं समेत घर के सभी सदस्यों की मौजूदगी में हल्दी पूजन होता है और फिर उसके बाद हल्दी और तेल का मिश्रण दुल्हा-दुल्हन को लगाया जाता है। इसके साथ ही इस रस्म में नाच-गाना भी होता है।

शादियों में चूड़े की रस्म भी देखने के लायक होती है, जिसमें दुल्हन के हाथों में सुहाग के निशानी के तौर पर चूड़ा पहनाया जाता है। ये रस्म शादी की सुबह दुल्‍हन के घर पर ही होती है, जब दुल्‍हन के मामा उसके लिए चूड़ा ले कर आते हैं जिसमें लाल और सफेद रंग की 21 चूडियां शामिल होती हैं। इस चूड़े को एक रात पहले दूध में भिगोकर रखा जाता है और फिर उससे निकाल कर इन चूड़ों को घर के सभी बड़े अपना आर्शीवाद देते हैं, जिसके बाद ये चूड़ा दुल्हन के हांथो में पहनाया जाता है।

शादी में सेहरा बांधी भी एक महत्वपूर्ण रस्म होती है, जिसमें बारात निकलने से पहले दूल्हे की बहनें और जीजा दूल्हे के सिर पर सेहरा बांधने हैं और उसे वैवाहिक जीवन के लिए शुभकामनाएं देते हैं।

शादी में द्वार पूजा का भी विशेष मह्तव होता है, जब बारात के साथ पहुंचे दूल्हा का स्वागत सत्कार किया जाता है। दुल्हन की मां दूल्हें को तिलक लगाकर आरती करती हैं और फिर दूल्हे पर फूलों को न्यौछावर कर उसे शादी के मंडप तक लाया जाता है।

दूल्हे और उसकी सालियों के बीच का रिश्ता भी जूता चुराई की नोकझोक भरी रस्म से शुरू होता है। जब दूल्हा विवाह कार्यक्रम के लिए अपने जूते उतार कर मंडप में बैठता है तो तभी सालियां उसके जूते को छिपा देती हैं और फिर उसे वापस करने के लिए मुंह-मांगा शागुन पाती हैं। ऐसे में ये रस्म बेहद ही रोचक और मजेदार बन जाती है।

विदाई शादी की सबसे भावुक रस्म होती है, जब दुल्हन को अपना घर छोड़ना होता है। ऐसे में ये पल दुल्हन के साथ ही उसके परिजनों के लिए बेहद कठिन और भावुक होते है। दुल्हन एक-एक कर अपने सभी परिजनों से विदा लेती।

सुसराल में गृहप्रवेश के साथ ही दुल्हन एक नए जीवन में प्रवेश करती है। ऐसे में गृहप्रवेश की रस्म भी बेहद महत्पूर्ण होती है, जिसमें घर की सभी महिलाएं नई दुल्हन गृहलक्ष्मी का स्वागत करती हैं। घर के द्वार पर चावल वाले कलश को ठोकर मार दुल्हन घर में प्रवेश करती है और इस तरह से गृहप्रवेश की ये रस्म घर में लक्ष्मी और धन-धान्य के आगमन का सूचक माना जाता है।

आखिर में दुल्हा-दुल्हन के बीच अंगूठी ढूंढने की रोचक रस्म होती है, जिसमें एक बड़े से थाल में दूध और गुलाब की पुंखुड़ियों के बीच दोनो को एक अंगूठी ढ़ूढ़नी होती है। माना जाता है कि जो अंगूठी को पहले ढ़ूंढ़ लेता है, दाम्पत्य जीवन में उसकी ही चलती है। ऐसे में इस रस्म में काफी हंसी ठिठोली होती है और इसी हंसी-खुशी के साथ दुल्हा-दुल्हन अपने नए जीवन की शुरूआत करते हैं।

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