क्या सरस्वती नदी अभी भी जमीन के नीचे से बहती है, जानिए सच

आपने प्रयाग में त्रिवेणी संगम के बारे में तो सुना ही होगा कहते हैं कि यहां 3 नदियां गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं। इसलिए इस जगह को त्रिवेणी संगम कहां जाता है। प्रयाग में लोगों ने गंगा और यमुना को मिलते हुए तो देखा होगा लेकिन सरस्वती नदी को किसी ने नहीं देखा। तो क्या सरस्वती नदी विलुप्त हो गई अगर नहीं तो वह दिखती क्यों नहीं। सरस्वती अब एक रहस्यमई नदी बनकर रह गई है। क्योंकि कुछ लोगों का कहना है कि सरस्वती नदी जमीन के नीचे से बहकर प्रयाग पहुंचती है। वहीं कुछ लोगों का कहना है कि सरस्वती नदी विलुप्त हो गई है। और इसका होना एक धारणा है।इस पर कई वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं।

तो चलिए जानते हैं सरस्वती नदी से जुड़े रहस्यों के बारे में। सरस्वती नदी का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है ऋग्वेद में सरस्वती नदी को यमुना के पूर्व और सतलुज के पश्चिम में बहते हुए बताया गया है। महाभारत में भी सरस्वती नदी के बारे में बताया गया है। इस ग्रंथ में बताया गया है कि महाभारत काल में सरस्वती नदी को विलक्षवती नदी, वेद स्मृति और वेदवती नदी कहा गया है। साथ ही इसके लुप्त होने की बात भी कही गई है। अभी तो जिस जगह यह नदी गायब हुई उसे विनाशना और उपमंजना कहते हैं।

फ्रांस के एक प्रोटो हिस्टोरियन माइकल डैनिनो ने सरस्वती के उत्पन्न और विलुप्त होने के कारणों पर रिसर्च की और कहा कि भारतीय ग्रंथ ऋग्वेद के मुताबिक सरस्वती बहुत बड़ी नदी थी जो कि पहाड़ों के बीच से बहती थी। अपनी रिसर्च ‘द लोस्ट रिवर’ में डैनिनो कहते हैं कि 2000 साल पहले कईं भौगोलिक परिवर्तन हुए थे जिसकी वजह से पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों में से एक सरस्वती नदी गायब हो गई थी। भारतीय आर्कियोलॉजिकल काउंसिल ने एक रिसर्च में कहा है कि सरस्वती का उद्गम उत्तराखंड में रूपण नाम के एक ग्लेशियर से होता था और यह नैतवार में आकर ग्लेशियर में बदल जाती थी। फिर इसकी जलधारा आदि बद्री तक पहुंचती थी जहां इसे सरस्वती नदी कहा जाता था। इसके बाद नदी आगे बढ़ती कि इस रिसर्च के बाद रूपण ग्लेशियर को सरस्वती ग्लेशियर कहां जाने लगा था।

सरस्वती नदी हरियाणा और राजस्थान के कुछ क्षेत्रों से बहती थी जिसकी कई सहायक नदियां भी थींं। जियोलॉजिकल सर्वे में पता चलता है कि सदियों पहले प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण सरस्वती नदी ने अपना रास्ता बदल दिया था। कईंं बड़े पहाड़ भूकंप के कारण धरती के ऊपर आ गए और सरस्वती की सहायक नदी यमुना ने उत्तर और पूर्व की ओर बहना शुरू कर दिया। इन्ही भूकंप के झटकों के कारण यह सरस्वती नदी का पानी भी यमुना नदी में बहने लगा और सरस्वती नदी उस वक्त सूख गई थी।

नासा ने भी सरस्वती नदी के होने की बात को माना है। भारत और नासा के वैज्ञानिकों ने एक ज्वाइंट ऑपरेशन में सैटेलाइट प्रोग्राम शुरू किया जिसका उद्देश्य एक ऐसी नदी के प्रवाह मार्ग का पता लगाना था जो कभी भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र से बहती थी। सेटेलाइट से मिली तस्वीरों के मुताबिक यह नदी 8 किलोमीटर चौड़ी थी जो लगभग 4000 साल पहले प्राकृतिक बदलाव के कारण सूख गई थी। नासा ने भी माना है कि लगभग 5500 साल पहले सरस्वती नदी भारत के हिमालय से निकलकर हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में लगभग 1600 किलोमीटर तक बहती थी।

इसरो के वैज्ञानिक ए के गुप्ता ने अपनी टीम के साथ थार के रेगिस्तान में रिसर्च की। उन्होंने पाया कि यहां पानी का कोई भी स्रोत नहीं है फिर भी धरती के नीचे कुछ जगहों पर ताजे पानी के भंडार हैं। ऐस ही जैसलमेर में भी हुआ जहां जमीन के नीचे 50 मीटर पर भी जल मौजूद है। जहां खोदे गए कुएँ कई साल से सूखे नहीं हैंं। एक आइसोटोप टेस्ट में भी यहां के रेत के टीलों के नीचे पानी मिला है और इसकी रेडियो कार्बन डेटिंग इस बात की ओर इशारा करती है कि यहां जमा पानी हजारों साल पुराना है। लेकिन क्या यह सरस्वती नदी का पानी है या नहीं इस पर रहस्य कायम है। तो क्या सरस्वती नदी विलुप्त हो गई या फिर जमीन के नीचे छोटे-बड़े जलाशयों के रूप में मौजूद है यह कहना अभी मुश्किल है। भारत और कईंं देशों के वैज्ञानिकों की रिसर्च अभी भी जारी है।

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