गांधीजी की निजी जिंदगी को आप कैसे देखते हैं? क्या वे सच में महात्मा कहलाने के हकदार हैं?

गांधी जी की निजी जिंदगी विवादास्पद है I गांधीजी का जीवन फकीरो जैसा तो था पर वैसी फ़कीरी राजा महाराजाओं को भी शायद ही नसीब होती हो I गांधीजी बकरी का दूध पीते थे पर वह बकरी क्या खाती थी-काजू-किशमिश और महंगे फल I गांधीजी ऑटोग्राफ देने के 5 रूपये लेते थे I उस समय का 5 रुपया आज के 5 हज़ार के बराबर है I

गांधीजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है उनके पिता बहुत बीमार थे और वे उनके पैर दबा रहे थे I लेकिन पैर दबाने में उनका जी नहीं लग रहा था I उनके दिमाग में कुछ और चल रहा था I उनके पिता ताड़ गए I उन्होंने उनको जाने के लिए कहा I वो सीधे कस्तूरबा के कमरे में पहुंचे I कुछ ही देर में किसी ने आकर दरवाजा खटखटाया और पिता की मृत्यु की खबर दी I उस समय गांधीजी प्राकृतिक कार्य में लिप्त थे I गांधीजी एक बार वेश्यालय भी गए थे पर आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हुई I गांधीजी जब बहुत बड़े नेता बन गए तो वे दो महिलाओं के कंधे पर हाथ रखकर उनका सहारा लेकर चलते थे I रोज गांधीजी के शरीर का तेल मालिश होता था और यह काम भी महिलाएं ही करती थी, पुरुष नहीं I ऐसा भी नहीं था की ये महिलाएं गरीब घर की मजबूर महिलाएं थीं जो पैसे के लिए यह सब करती थीं I ये सब प्रसिद्द घरो की विदुषी महिलाएं थीं I उनकी एक शिष्या थीं मीराबेन जो ब्रिटिश रियर-एडमिरल सर एडमंड स्लेड की बेटी थी। उन्होंने गांधी जी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया था और कई बार जेल भी गयी थीं I आजादी के बाद मीराबेन ने ऋषिकेश के पास पशुलोक आश्रम और 1952 में भिलंगना में बापू ग्राम नामक गोपाल आश्रम की स्थापना की। वे चिपको आंदोलन से भी जुड़ी रहीं I जय प्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती, जो एक जमींदार की बेटी थीं, गांधी जी के सम्मोहन में उनके साथ ही रह गयी I

अपनी पोती के साथ ब्रह्मचर्य का प्रयोग तो सबसे विवादित रहा I नेहरू जी ने इसका विरोध किया और कहा इससे लोगो में गलत सन्देश जायेगा I गांधी ने कहा था मैं ऐसा चोरी छिपे नहीं कर रहा I कोई क्या समझेगा इस डर से मैं कोई काम करना या नहीं करना नहीं छोड़ूंगा I

वास्तव में ब्रह्मचर्य कारण नहीं, परिणाम है I जब व्यक्ति का पीनियल ग्लैंड सक्रिय होने लगता है तो ब्रह्मचर्य सध जाता है, इसे साधना नहीं पड़ता I आध्यात्मिक रूप से सक्रिय व्यक्ति के आस पास संवेदनशील लोग इकट्ठे होने लगते हैं I महिलाएं ज्यादा संवेदनशील होती हैं I कहते हैं वर्धमान महावीर की सभा में यदि 50 हज़ार लोग इकट्ठे होते थे तो उनमे लगभग 40 हज़ार महिलाएं होती थीं I धर्म के मूल तत्त्व पुरुष से निःसृत होते हैं पर उन्हें पुष्पित पल्लवित महिलाएं ही करती हैं I जीवन महिलाओ के कोख और आँचल में ही पलता है I सिस्टर निवेदिता विवेकानंद के साथ और श्री माँ महर्षि अरबिंद के साथ छाया की तरह रहती थी I तंत्र आध्यात्मिक उत्थान की एक विधा है जिसमें उपयुक्त महिला के सक्रिय सहयोग के बगैर आगे नहीं बढ़ा जा सकता I

भारत में चरित्र की परिभाषा बड़ी विचित्र है I कोई किसी की करोड़ों की संपत्ति डकार ले, कोर्ट में झूठी गवाही दे दे, झूठ और कपट का जीवन जिए तो भी समाज में चरित्रहीन नहीं कहलाता I पर किसी लड़की का स्कर्ट घुटने से कुछ ऊपर हो जाये तो उसके चरित्र पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है !

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