ग्रीन गोल्ड किसे कहते हैं? और क्यों? जानिए

खेतों को खाली छोड़ने के बजाए ‘हरा सोना’ यानी बांस की खेती करके किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। एक हेक्टेयर में सिर्फ पांच हजार रुपये निवेश करके बांस को लगाया जा सकता है। 5-6 साल में यह तैयार हो जाता है। इसके बाद 30 साल तक बांस बढ़ता रहता है। इसीलिए इसे ‘दीर्घकालिक निवेश’ भी माना जाता है। बुंदेलखंड की भूमि के लिए बांस की कटीला किस्म लगाना बेहतर होगा।

बांस काफी तेजी से बढ़ते है, इसलिए इसको ‘हरा सोना’ भी कहा जाता है। बरसात के सीजन में जुलाई से अगस्त तक इसको लगाया जाता है। पांच से छह साल में बांस तैयार हो जाता है। अक्तूबर से दिसंबर के बीच बांस की कटाई होती है। रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अरविंद कुमार ने बताया कि बांस को एक बार लगा देने के बाद जब यह बढ़कर तैयार हो जाता है, तो लगभग 30 साल तक इसको काटा जा सकता है। सिर्फ देखरेख की जरूरत होती है। एक हेक्टेयर में बांस के 400 पौधे लगते हैं।

इसके लिए महज पांच हजार रुपये खर्च आता है। बुंदेलखंड की भूमि के लिए बांस की कटीला किस्म लगाना उपयुक्त होगा, क्योंकि इसको सिंचाई के लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। जबकि, अन्य किस्मों को अधिक पानी देना पड़ता है। नदी, नालों व ऊंची-नीची जमीन पर भी बांस लाया जा सकता है। खेतों में लगी अन्य फसलों के चारों तरफ बांस लगा देने से अन्ना जानवरों द्वारा किए जाने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है। ऊसर भूमि में बांस नहीं बढ़ सकता है। कुलपति ने बताया कि बांस की खेती के संबंध में अधिक जानकारी के लिए किसान कृषि विश्वविद्यालय के सेंट्रल एग्रोफॉरेस्ट्री रिसर्च इंस्टीट्यूट से संपर्क कर सकते हैं।


पूर्वोत्तर में सबसे अधिक उत्पादन
देश में पूर्वोत्तर से बांस का सबसे अधिक यानी 30 फीसदी उत्पादन होता है। इसके बाद मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ को मिलाकर लगभग 20 प्रतिशत उत्पादन होता है। उत्तर प्रदेश में महज सात फीसदी वन क्षेत्र है। ऐसे में बांस लगाकर वन क्षेत्र को भी बढ़ाया जा सकता है।

पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद
पर्यावरण के लिए भी बांस की खेती फायदेमंद है। यह कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित करता है और आक्सीजन छोड़ता है। इससे पर्यावरण के लिए हानिकारक उत्सर्जन गैसें कम होने लगती हैं।
खाने से वस्तु बनाने तक आता काम
बांस की बांसुरी, डलिया, लकड़ी के पंखे, फर्नीचर, लाठी, कप, हेंगर, घर के सजावट की वस्तुएं, छाया के लिए जरूरी शेड आदि बनाया जा सकता है। कई जगहों पर तो बांस के नए कल्ले पकौड़ी बनाकर भी खाए जाते हैं।

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