जानिए आखिर गुलाब जामुन का नाम “गुलाब जामुन” कैसे पड़ा, जबकि ना तो इसमें “गुलाब” है और ना ही इसमें “जामुन” है?

गुलाबजामुन तेज़ चीनी वाली एक मिठाई है जब कि गुलाब एक फूल का नाम है एवं जामुन एक फल है।

मतलब कहीं भी कोई भी तो संबन्ध नहीं।

सिर्फ़ इतना ही नहीं इसके नामकरण का इतिहास भी उतना ही उलझा हुआ है।

गुलाब जामुन मूल रूप से ईरान की मिठाई है। आटे की गोलियों को तेल में तल कर शहद अथवा चीनी की चाशनी में डाल दिया जाता है। इसका फ़ारसी नाम है- लुक्मत अल कादी।

आटे से क्यों? यह भी देख लें।

दरअसल हर समाज का भोजन वहाँ कि जलवायु एवं खाद्य पदार्थों कि उपस्थिति तय करती है।

भारत में भरपूर हरियाली है, दूध देने वाले पशु हैं। सुबह सवेरे दूध आना दिनचर्या का हिस्सा है। और हमारी अधिकांश मिठाइयाँ भी दूध से बनी होती हैं।

उन देशों में जहाँ घास के मैदान नहीं हैं, दुधारू पशुओं की कमी है वहाँ दूध को इतना महत्व नहीं दिया जाता।

हमारे लिए चावल की खीर मतलब खूब गाढ़े दूध में पके चावल होते हैं जब कि ईरान में (सिर्फ़) पानी मे चावल अच्छी तरह से पकाकर, उसमें शहद या चीनी मिला दी जाती है और अंत में ऊपर खूब सारी पिसी दालचीनी बुरक दी जाती है। खाने में ठीक ही लगती है।

अब आयें प्रश्न पर-

गुलाबजामुन की मिठाई ईरान से आई है परन्तु नाम नहीं। हालाँकि ‘गुलाब’ शब्द फ़ारसी का है।

भारत में हम जिस तरह ‘गुलाब’ शब्द का प्रयोग करते हैं वह त्रुटिपूर्ण है। मूल फ़ारसी में इस फूल का वास्तविक नाम है- गुल अथवा गुल ए सुर्ख़। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस फूल के पतों के अर्क को गुलाब (गुल + आब) कहा जाता है और यही इसका सही अर्थ भी है।

आब मतलब पानी तो हम सभी जानते हैं।

भारत के हलवाई गुलाबजामुन के लिए बनाई चासनी में ‘गुल’ नामक इन फूलों ( जिनका यहाँ अब गुलाब नाम प्रचलित हो चुका था) उनकी पत्तियाँ डाल देते जिससे वह ‘गुल के आब’ की तरह महकने लगती।

तो गुलाब शब्द तो सुलझ गया

इतनी देर से गुलाब जामुन की बाते ही कर रहे हैं। थोड़ा रुक कर उन्हें निहार भी लें।

कहते हैं मुग़ल बादशाह शाहजहाँ इनके बहुत शौक़ीन थे अतः उनके लिए यह भारत में बनाई जाने लगी। परन्तु कुछ फेर बदल के साथ। आटे की जगह मावे का प्रयोग किया जाने लगा। इन्हें भी तलकर चासनी में डाला जाता है।

निश्चय ही वह अधिक स्वादिष्ट लगा होगा।

अब बारी है- ‘जामुन क्यों?’

चासनी में तैरते मावे के यह टुकड़े तब बेलनाकार ( cylindrical) बनाये जाते थे जो चासनी में तैरते जामुन फल की तरह लगते।

और नाम पड़ गया ‘गुलाब जामुन।’

लगता है बनाने वाले ने थोड़ी जल्दबाज़ी कर दी। चन्द मिनट और तला होता तो जामुनों के अधिक क़रीब लगते

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