जानिए ब्रह्म मुहूर्त किसे कहते हैं एवं ब्रह्म मुहूर्त में उठने से क्या लाभ हैं?
रात्रि के अंतिम प्रहर के तत्काल बाद और सूर्योदय से 96 मिनट पूर्व तक का समय ब्रह्ममुहूर्त कहलाता है। इस समय संपूर्ण वातावरण शांतिमय और निर्मल होता है। सत्व गुणों की प्रधानता रहती है। इस समय विभिन्न गुफाओं, कन्दराओं एवं अरण्यों में ऋषि-मुनि, साधु-संत ध्यान-उपासना में लीन रहते हैं। उनकी सात्विक आभा वातावरण में विकीर्णित होती है। कहा जाता है कि देवी-देवता इस काल में विचरण करते हैं। इसे अमृत वेला भी कहा जाता है। ईश्वर-भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है
वैज्ञानिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि ब्रह्म मुहूर्त में वायुमंडल प्रदूषणरहित होता है। इसी समय वायुमंडल में ऑक्सीजन (प्राणवायु) की मात्रा सबसे अधिक (41 प्रतिशत) होती है, जो फेफड़ों की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती है। शुद्ध वायु मिलने से मस्तिष्क को अतिरिक्त ऊर्जा प्राप्त होता है जिसके चलते अध्ययन की बातें स्मृति कोष में आसानी से चली जाती है।
इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बांग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्मुहूर्त में चैतन्य होकर हमें बिस्तर छोड़कर उठने का संदेश देती है।
आयुर्वेद में ब्रह्ममुहूर्त में जागने से दिन के आरम्भ का महत्व बताया गया है।
वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मिं स्वास्थ्यमायुश्च विन्दति । ब्राह्मे मुहूर्ते सञ्जाग्रच्छ्रियं वा पङ्कजं यथा ॥ – (भैषज्यसार 93)
अर्थात् ब्राह्ममुहूर्त में उठने वाला पुरूष सौन्दर्य, लक्ष्मी, स्वास्थ्य, आयु आदि वस्तुओं को वैसे ही प्राप्त करता है जैसे कमल।
महाराज मनु का कथन है—
ब्राह्मे मुहूर्ते बुद्ध्येत, धर्मार्थौ चानुचिन्तयेत।
अर्थात् ब्राह्म मुहूर्त में प्रबुद्ध होकर, धर्म और अर्थ का चिंतन करना चाहिए।
ब्राह्मे मुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी।
अर्थात् ब्राह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्यों का नाश करनेवाली है।