जानिए भगवान का चरणामृत कैसे बनता है?

अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णो: पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।

चरणामृत का अर्थ होता है भगवान के चरणों का अमृत और पंचामृत का अर्थ पांच अमृत यानी पांच पवित्र वस्तुओं से बना अमृत के समान पदार्थ।

जब कभी मंदिर जाते है, सत्य नारायण व्रत कथा, वह जन्माष्टमी पर पंचामृत बनाया जाता है।

इस को बनाने में गौ दूध,धी,दही ,गंगाजल, शहद व तुलसी दल का प्रयोग किया जाता है।इन सभी को एक निश्चित मात्रा में लेकर पंचामृत बनाया जाता है ।वह इस से भगवान का अभिषेक किया जाता है।जिस का आध्यात्मिक महत्व भी है। इसमें मिलने वाले पाँचों तत्व हमें हमारे जीवन के विषय में शिक्षा देते है।शांत,निष्कलंक, उदार, मिठास, इन भावों को जीवन में लाने से हम आगे बढ़ते व उन्नति करते है।

चरणामृत। ये ताँबे के लौटे में जल ,गंगाजल, तुलसी दल आदि मिलाकर बनाया जाता है ।इसे मंदिर में रखा जाता है ।ये जल अपने आप में औषधीय गुण रखता है।यदि हम गौर करे तो पुराने समय मे घरो में ताँबे के बर्तन का प्रयोग किया जाता था।आयुर्वेद में ताँबे के अन्दर कई ओषधि गुण बताए गए है। रोगों से लड़ने की क्षमता होती है ।तुलसी भी औषधि के रूप में प्रयोग कि जाती है।( सनातन धर्म में जितने भी रीति-रिवाज है उनके पीछे कुछ ना कुछ वैज्ञानिक तर्क होता है।)

चरणामृत से रोगप्रतिरोधक क्षमता बढती है ।यह मानसिक शांति भी बढाता है।पौरूष शक्ति बढाने के लिए भी अच्छा माना जाता है ।

श्रृद्धा भक्ति से इसे बना चाहिए। वह घर के मंदिर में भी ताँबे के लौटे में जल भर कर रखे। अगले दिन उस जल का घर में छिड़काव करके ग्रहण भी करना चाहिए। इस से घर में सकारात्मक ऊर्जा activite होती है जो घर समृद्धि,स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है।

स्वयं के अनुभव व प्रयोग के आधार पर साझा किया है।

विश्वास के साथ प्रयोग करे ।सकारात्मक सोच रख कर।

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