ड्रिंक करने से नशा क्यों चढ़ता है,जानिए इसके बारे में रोचक बातें
आज कल के ज्यादातर यंगस्टर्स पूरी तरह से शराब के आदी हैं। शराब पीने वाले लोग भी बहुत अलग अलग प्रकार के होते हैं। कुछ ऐसे होते हैं, जिन्हें 7-8 ड्रिंक्स के बाद भी कुछ फर्क नहीं पड़ता, वहीं कुछ ऐेसे भी होते हैं, जिन्हें 2 ड्रिंक्स के बाद ही इतना नशा हो जाता है कि फिर उन्हें कुछ होश नहीं रहता है।
अक्सर आपने शराब के नशे में लोगो को मस्ती से झूमते और नाचते देखा होगा। तो आखिर ऐसा क्यों है कि अगर एक ड्रिंक आपको अच्छा महसूस कराती है, तो वहीं 5-6 ड्रिंक्स के बाद आपको नशा चढ़ने लगता है? तो बता दें कि इसका कारण है अल्कोहल, या यूं कहें कि अल्कोहल में बरसों से पाया जाने वाला में इथेनॉल।
दरअसल जब आप अल्कोहल पीते हैं, तो आपके शरीर में पानी में घुलनशील इथेनॉल स्वतंत्र रूप से पास होता है। यह आपके पाचन तंत्र में प्रवेश करने के बाद, आपके खून में जाता है। इसके बाद सेल मैमबरेंस से गुजरता हुआ यह आपके दिल के माध्यम से स्ट्रॉल करता है।
इसे विशेष रूप से मस्तिष्क में रहना पसंद होता है, जहां यह एक केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को अवसादग्रस्त कर देता है। मस्तिष्क में पहुंचने पर इथेनॉल भटकता रहता है और इसकी वजह से फीलगुड डोपामाइन रिलीज होते हैं और तंत्रिका रिसेप्टर्स के साथ लिंक हो जाते हैं। इन रिसेप्टर्स में से इथेनॉल विशेष रूप से ग्लूटामेट से जुड़ता है।
यह एक न्यूरोट्रांसमीटर है, जो न्यूरॉन्स को उत्तेजित करता है। इथेनॉल ग्लूटामेट को सक्रिय बनाने की अनुमति नहीं देता है और यह उत्तेजनाओं का जवाब देने के लिए मस्तिष्क को धीमा कर देता है। इथेनॉल, गामा एमिनोब्युटिक एसिड (जीएबीए) को बांधता है। ग्लूटामेट के साथ अपनी कठोरता के विपरीत, इथेनॉल गाबा रिसेप्टर्स को सक्रिय करता है।
ये रिसेप्टर्स एक व्यक्ति को शांत और निद्रा महसूस कराते हैं, जिससे मस्तिष्क की क्रिया भी आगे बढ़ती है। बेशक, किसी की शराबी की गंभीरता अन्य कारकों पर भी निर्भर है। आपको यकीन नहीं होगा लेकिन आपका लिंग, आयु, वजन, यहां तक कि आप जो खाते हैं, वो भी आपकी नशे की लत में कुछ भूमिका निभाते हैं।
अल्कोहल को अंत में लगभग 29 मिलीलीटर प्रति घंटे की दर से लिवर में एंजाइमों द्वारा मेटाबोलाइज किया जाता है, लेकिन इस प्रक्रिया से अंगों को लंबे समय तक के लिए नुकसान हो सकता है। शराब की ओवरडोज मस्तिष्क के कामों में इतनी ज्यादा कमी कर सकती है कि यह शरीर में महत्वपूर्ण सिग्नल भेजने में भी विफल रहता है।