तुलसी माता कहाँ से प्रकट हुई थी? जानिए
हिन्दू धर्म मे तुलसी का बहुत महत्त्व है। तुलसी एक धार्मिक पौधा है। तुलसी माता की उत्पत्ति कैसे हुई इसकी एक पौराणिक कथा प्रचलित हैं।
एक बार दैत्यराज जालंधर के साथ भगवान विष्णु को युद्ध करना पड़ा । काफी दिन तक चले संघर्ष में भगवान के सभी प्रयासों के बाद भी जालंधर परास्त नहीं हुआ । अपनी इस सफलता पर श्री हरि ने विचार किया कि यह दैत्य आखिर मारा क्यों नहीं जा रहा है।
तब पता चला कि दैत्यराज की रूपवती पत्नी वृंदा का तप बल ही उसकी मृत्यु में अवरोधक बना हुआ है। जब तक उसके तपोबल का क्षय नहीं होगा तब तक राक्षस को परास्त नहीं किया जा सकता।
इस कारण भगवान ने जालंधर का रूप धारण किया व तपस्विनी वृंदा की तपस्या के साथ ही उसके सतीत्व को भी भंग कर दिया। इस कार्य में प्रभु ने छल कपट दोनों का प्रयोग किया। इसके बाद हुए युद्ध में उन्होंने जालंधर का वध कर युद्ध में विजय पाई। पर जब वृंदा को भगवान के छलपूर्वक अपने तप व सतीत्व को समाप्त करने का पता चला तो वह बहुत क्रोधित हुई और श्री हरि को श्राप दिया कि तुम पत्थर के हो जाओ। इस श्राप को प्रभु ने स्वीकार किया और साथ ही उनके मन में वृंदा के प्रति अनुराग उत्पन्न हो गया। तब उन्होंने उससे कहा कि वृंदा तुमने मुझे छाया प्रदान करना। वही वृंदा तुलसी रूप में पृथ्वी पर उत्पन्न हुई व भगवान शालिग्राम बने। इस प्रकार कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी शालिग्राम का प्रादुर्भाव हुआ।