दुर्योधन का परम मित्र कर्ण महाभारत के युद्ध में शुरुआत के 10 दिनों तक युद्ध भूमि में क्यों नहीं आया?

कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले योद्धाओं का श्रेणि आकलन करते वक्त कुरु सेनापति भीष्म पितामह ने कर्ण को एक आधा-रथी का दर्जा दिया था। उन्होंने यह भी कहा कि कर्ण पांडवों से युद्ध करेगा तो उसका मरना अर्जुन के हाथों तय है। इस बात पर द्रोण ने भी सहमति जताई थी।

इस बात पर कर्ण को गुस्सा आ गया। उसने पितामह भीष्म को अत्यंत बुद्ध, दुष्ट आत्मा और उनका बहिष्कार करने के लिए दुर्योधन को बोल दिया। कर्ण के मुताबिक वह अकेला पांडव और पांचाल सेना को परास्त कर सकता था।

भीष्म कौरवों की ओर से सेनापति नियुक्त किये गए तो कर्ण ने उनके युद्ध भूमि में रहने तक युद्ध करने से मना कर दिया।

इसीलिए भीष्म के १०वें दिन अर्जुन के द्वारा मृत्यु सज्या पर जाने के बाद यानि ग्यारवे दिन से कर्ण युद्ध भूमि में कौरवों की और से लढाई की।

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