दुर्योधन की पूजा किस स्थान पर की जाती है?

जी हां, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में दुर्योधन और कर्ण के मंदिर हैं. दुर्योधन का मंदिर यहां के नेतवार नामक जगह से करीब 12 किमी दूर ‘हर की दून’ रोड पर स्थ‍ित सौर गांव में है. देहरादून से करीब 95 किमी दूर चकराता और चकराता से करीब 69 किमी दूर नेतवार गांव है. जबकि कर्ण मंदिर नेतवार से करीब डेढ़ मील दूर सारनौल गांव में है.

सारनौल और सौर गांव की यह भूमि भुब्रूवाहन नाम के एक महान योद्धा की धरती है. मान्यता है कि पाताललोक का राजा भुब्रूवाहन द्वापरयुग में कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत युद्ध का हिस्सा बनना चाहता था. मन में यही चाहत लिए वह धरती पर आया, लेकिन भगवान कृष्ण ने बड़ी ही चालाकी से उसे युद्ध से दूर कर दिया. भुब्रूवाहन कौरवों की तरफ से युद्ध में शामिल होना चाहता था और कृष्ण को अंदेशा था कि भुब्रूवाहन अर्जुन को चुनौती दे सकता है. इसलिए उन्होंने भुब्रूवाहन को एक चुनौती दी.

कृष्ण ने भुब्रूवाहन को एक ही तीर से एक पेड़ के सभी पत्तों को छेदने की चुनौती दी, इस बीच कृष्ण ने एक पत्ता तोड़कर अपने पैर के नीचे दबा लिया. भुब्रूवाहन का तीर पेड़ पर मौजूद सभी पत्तों को छेदने के बाद कृष्ण के पैर की तरफ बढ़ रहा था, तभी उन्होंने अपना पैर हटा लिया.

कृष्ण किसी भी तरह भुब्रूवाहन को युद्ध से दूर रखना चाहते थे और उन्होंने उसे निष्पक्ष रहने को कहा. निष्पक्ष रहने का अर्थ युद्ध से दूर रहना था और महाभारत के युद्ध से दूर रहना किसी भी योद्धा को मंजूर नहीं होता, इसलिए कृष्ण ने भुब्रूवाहन से पार पाने का रास्ता निकाल लिया. उन्होंने किसी तरह भुब्रूवाहन का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया.

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