दो दिव्यांगो की दिल छू लेने वाली प्रेम कहानी

एक किशोर नाम का युवक बोलने में असमर्थ था लेकिन सुन सब लेता था। कुछ दिन पहले ही उसके पड़ोस में एक नया परिवार आया था। किशोर की मां ने कहा बेटा जो वह सामने घर में रहने आये हैं उनकी बेटी न सुन सकती है और न बोल सकती है। लेकिन है बहुत समझदार। कुछ दिन बाद किशोर की उस लड़की से मुलाकात हुई तो किशोर ने लड़की से इशारे में कहा तुम मेरी दोस्त बनोगी। लड़की समझदार थी उसे फौरन समझ में आ गया की किशोर क्या कह रहा है। इसके बाद दोनों को जब भी समय मिलता वह अपना वक्त पास के एक पार्क में बिताते 

ये दोस्ती कब प्यार में बदल गई दोनों को पता ही न चला अब वह रोज मिलते पार्क में समय बिताते और इशारों इशारों में बातें करते रहते। जिसे देखकर कुछ फालतू किस्म के लोग हंसते और मजाक बनाते लेकिन लोगो की मजाक का वह दोनों कभी बुरा नहीं मानते थे। इसी तरह से समय बीतता गया और हिम्मत करके किशोर ने अपनी बात परिवार वालों को बताई सामने के मकान की तरफ इशारा करते हुए किशोर ने सारा हाल अपने हाव भाव और उंगलियों के इशारे से कह डाला दूसरे ही दिन किशोर के माता-पिता सामने में रहने वाले उस लड़की के परिवार वालों से मिले और कहने लगे देखो आपकी बेटी मेरे बेटे को पसंद है और दोनों एक दूसरे को चाहते हैं हम अगर मुद्दे की बात करें तो हम आपकी बेटी और अपने बेटे की शादी की बात करने आये हैं। लड़की के माता-पिता ने किशोर के माता-पिता को एक कमरे में बैठा दिया अब दोनों सोच रहे थे आखिर अब क्या होगा। कुछ देर बाद मिठाई और खाने चीजों से सजी हुई बर्तन उनमें सामने रखा गया।

 लड़की के पिता ने कहा माफी चाहता हूं समधन और समधि जी इंतजार कराने का वह आप अचानक आये बिना बताए तो हमारे पास मीठे का इंतजाम नहीं था इसलिए हमने आपको इस कमरे में बैठा रखा था। उनके मुंह से समधि और समधन‌ सब्द सुनकर किशोर के माता-पिता समझ गये थे की बात बन चुकी है। लड़की भी कुछ दुर में सर नीचे किते हुये खड़ी खड़ी मुस्कुरा रही थी। लड़की के पिता ने इशारे से कहा करता बेटा बस खड़ी होकर सिर्फ सोचती ही रहोगी की की इनका आशिर्वाद भी लोगी। लड़की तुरंत आई पांव छुए इसके बाद शादी की तारीख तय की गई अगले महीने की समय बीता वह समय भी आ चुका था दोनों की शादी हुई और अब दोनों हमेशा के लिए एक हो चुके थे।

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