पहचानें अपने पांच सबसे बडे शत्रु और मित्र

आप जानते हैं कि ईश्वर ने हमें इस दुनियां मे सबसे श्रेष्ठ और परिपूर्ण रुप से इन्सान बना कर भेजा है क्योंकि हमें खूबसूरत शरीर के साथ साथ मन बुद्धि और चेतना भी दी है जिनके द्वारा मानव हर सम्भावनाओं पर पार पा सकता है। ईश्वर ने हमें एक सुन्दर और स्वस्थ शरीर व आत्मा प्रदान की है लेकिन हमने इन्हें खुद के द्वारा बनाये गये शत्रुओं के कारण बेकार व बीमार कर दिया है। आइये देखते हैं कि कौन से ऐसे हमारे सबसे बडे शत्रु हैं जिनके बारे मे हमें मालूम होना अति आवश्यक है। इसी के साथ हमारे पांच मित्र भी हैं जिनकी मदद से इन शत्रुओं पर काबू पाया जा सकता है।

  1. अंहकार।

अहंकार इंसान का ऐसा सबसे बडा शत्रु है जो सभी अच्छाइयों को खा जाता है। अहंकार ज्ञान को ढक देता है। आप अक्सर देखते होंगे कि कितना भी ज्ञानी व्यक्ति हो यदि उसमें अहंकार आ जाये तो ज्ञा न का दुरूपयोग ही होता है। वैसे तो अहंकार के साथ ज्ञान अर्जित करना भी मुश्किल है लेकिन यदि अर्जित कर भी लिया तो उसका सही उपयोग नहीं हो पाता है इसलिए सबसे पहले इस अहंकार रूपी शत्रु को समाप्त करना जरुरी है।

  1. क्रोध।

इन्सान का दूसरा शत्रु है क्रोध यह न केवल खुद के लिए बल्कि परिवार और समाज दोनों के लिए ही घातक है। इसका सबसे बडा नुकसान यह है कि यह बुद्धि को भी खा जाता है। आप खुद ही इसका अन्दाजा लगा सकते हो कि जब आप क्रोध के अधीन चले जाते हो तब खुद की पहचान पूरी तरह खो जाते हो।

  1. ईष्या।

यह सफलता का सबसे बडा दुश्मन है। यह एक तरह से एक अपूर्णता का भाव है जो इन्सान दूसरों से खुद से तुलना करके पैदा करता है। यह जीवन मे कभी भी आगे नहीं बढने देती और इन्सान की ऊर्जा और विवेक को समाप्त कर देती है।

  1. काम वासना।

यह एक ऐसा भाव है जो होता तो क्षणिक है लेकिन जीवन और भविष्य को हमेशा के लिए एक अन्धकार के गर्त मे डाल देता है। यह भी हमारी आदतों और मन के अनियंत्रण का नतीजा है।

  1. लालच।

एक कहावत तो आपने सुनी होगी कि लालच बुरी बला है। सही मायने मे देखा जाय तो यह पशु तुल्य प्रवृत्ति है। यह चरित्र का ह्रास करती है और जब चरित्र का ही पतन हो जाय फिर कुछ भी बाकी नहीं रहता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *