पानी भरी बालटी कुएँ में हलकी और बाहर भारी क्यों होती ?

वास्तविकता तो यह है कि पानी से भरी बालटी का भार हवा में और पानी में बराबर ही होता है लेकिन फिर भी वह हवा में भारी और पानी के अंदर हलकी लगती है। आर्कमिडीज का एक सिद्धांत है कि जब कोई भी वस्तु किसी द्रव में पूरी तरह या आंशिक रूप से डुबोई जाती है तो उसके भार में कछ कमी आ जाती है और यह कमी बराबर होती है उस वस्तु के द्वारा हटाए गए द्रव के भार के।

इसीलिए बाल्टी पानी में डूबी होती है तो बालटी द्वारा हटाए गए पानी के आयतन के भार के बराबर उसके भार में कमी महसूस होती है, लेकिन जब बालटी पानी से बाहर हवा में आती है तो जिस पानी के उछाल बल के कारण बालटी हलकी थी वह तो समाप्त हो जाता है और बालटी पर गुरुत्व बल प्रारंभ हो जाता है, जो उसे नीचे की ओर खींचने लगता है। इसके परिणामस्वरूप पानी से भरी बालटी कुएँ के पानी से बाहर आने पर भारी लगने लगती है। अतः हम कह सकते हैं कि द्रवों के उछाल बल के कारण बालटी हलकी और पृथ्वी के गुरुत्व बल के कारण बालटी अधिक भारी लगती है।

हमें किसी चीज का स्वाद कैसे मालूम पड़ता है ?

हम जो कुछ भी खाते-पीते या चखते हैं, उसमें जो भी स्वाद ह होता है उसकी जानकारी हमें जीभ द्वारा मिलती है। तुम सोचते होगे कि स्वाद तो खट्टे-मीठे, कड़वे या चरपरे अनेक तरह के होते हैं, फिर यह जीभ उनको ठीक से कैसे पता कर लेती है। इसके लिए जीभ में स्वादों की जाँच-पड़ताल के लिए स्वाद कलिकाएँ होती हैं। यदि जीभ को ध्यान से देखें तो उस पर बहुत बारीक-बारीक छोटे-छोटे तंतुओं से युक्त सैकड़ों दानेदार उभार नजर आते हैं।

इन्हें ही स्वाद कलिकाएं कहा जाता है। जब भोजन आदि जीभ के संपर्क में आते हैं तो वे हमारी लार में घुलकर स्वाद कलिकाओं को चैतन्य और सक्रिय कर देते हैं। यहाँ एक रासायनिक क्रिया होती है जिसके द्वारा स्वाद की जानकारी शरीर के सूचना केंद्र दिमाग को मिल जाती है और हमें स्वाद का पता चल जाता है। यहाँ यह जान लेना जरूरी है कि अलग-अलग तरह के स्वादों की पहचान के लिए जीभ के अलग-अलग भागों पर स्वाद कलिकाएं होती हैं।

जैसे रुचिकर मीठे और नमकीन स्वादों के लिए जीभ के आगे के भाग पर और अरुचिकर कड़वे स्वादों के लिए पीछे के भाग पर तथा खट्टेस्वादों के लिए ये स्वाद कलिकाएँ जीभ के किनारे के भागों पर रहती हैं। लेकिन जीभ के बीच में स्वाद कलिकाएं नहीं होतीं, इसलिए इस भाग से किसी भी तरह के स्वाद का पता नहीं चलता है। स्वाद में भोजन की गंध या खुशबू का भी अपना महत्त्व होता है। इस कार्य में नाक सहायता करती है और स्वाद-गंध का बोध कराती है।

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