पाप और पुण्य का हिसाब कैसे होता है? जानिए
‘पाप’ और ‘पुण्य’ की व्याख्या करते हुए भगवान श्री वेदव्यास जी ने कहा है कि – “परोपकाराय पुण्यस्य, पापाय परपीडनम।” अर्थात : अन्य जीवों को किसी भी प्रकार की सेवा/सहायता करके उन्हें सुख पहुंचाना (परोपकार) ‘पुण्य’कर्म है।
इसके विपरीत अन्य जीवों को किसी भी प्रकार का कष्ट/पीड़ा/दुःख पहुंचाना ‘पाप’ कर्म है।