पूजा करते समय सर ढकना क्यों अनिवार्य है

सभी धर्मों की स्त्रियां दुपट्टा या साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढंककर रखती थी। इसीलिए मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल पर जाते समय या पूजा करते समय सिर ढकना जरूरी माना गया था।

सिर के मध्य में सहस्त्रारार चक्र होता है। पूजा के समय इसे ढककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है।

विज्ञान के अनुसार सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील स्थान होता है। ब्रह्मरंध्र सिर के बीचों-बीच स्थित होता है। मौसम के मामूली से परिवर्तन के दुष्प्रभाव ब्रह्मरंध्र के भाग से शरीर के अन्य अंगों पर आतें हैं।

इसके अलावा आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती है।

इसी कारण सिर और बालों को ढककर रखना हमारी परंपरा में शामिल था।

यह मान्यता है जो कि जिसका भी हम सम्मान करते हैं या जो भी हमारे द्वारा सम्मान दिए जाने योग्य है। उनके सामने हमेशा सिर ढककर रखना चाहिए। इसीलिए पूजा के समय सिर पर और कुछ नहीं तो कम से कम रूमाल से ढक लेना चाहिए। इससे मन में भगवान के प्रति जो सम्मान और समर्पण है। उसकी अभिव्यक्ति होती है।

हमारे किसी भी परंपराओं के पीछे मनोवैज्ञानिक या वैज्ञानिक कारण कार्य करते हैं। जिसको करने के लिए हमारे आस्था से जोड़ दिया गया है। अपने पुरातन मान्यताओं पर चलकर ही भारत निरोग काया को प्राप्त कर विश्व गुरु बन सकता है।

वैज्ञानिक मत के अनुसार बालों की चुंबकीय शक्ति के कारण सिर में लोग फैलाने वाले कीटाणु जो बालों में आसानी से चिपक जाते हैं और बालों से शरीर में प्रवेश कर व्यक्ति को रोगी बना देते हैं। यह भी कहा जाता है आकाशिय विघुत तरंगें जिस व्यक्ति के खुले सिर होते हैं उन व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर, क्रोध, सिरदर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती है

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