बज्र नाम का शस्त्र किससे और कैसे बना था? जानिए
पुराणों में शस्त्र वे घातक हथियार हैं, जिनके प्रहार से चोट पहुँचती है और मृत्यु होती है। ये हथियार अधिक उपयोग किये जाते थे कहा जाता था जो हाथ में पकड़ते हुए चलाए जाते थे, अस्त्रों की तरह इन्हें दूर नहीं फेंका जाता था।
ये शस्त्र दुश्मन पर सीधा प्रहार करने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे। इनसे दुश्मन का वध करके उसे मृत्यु दिलाई जाती थी। तलवार, परशु, गदा, वज्र त्रिशूल, बरछा, ये सभी शस्त्रों की श्रेणी में आते थे।
वज्र नामक शस्त्र के निर्माण के लिए अनेको कथाएं प्रचलित है इन मे से कुछ मुख्य कथाओं को संक्षेप में बताने का प्रयास कर रही हूं,
पुराणानुसार भाले के फल के समान एक शस्त्र जो इंद्र का प्रधान शस्त्र कहा गया है इसका नाम इन्द्रव्रज है उपरोक्त चित्र उसकी छवि की कल्पना करने में सहायक होगा।
मत्स्य पुराण के अनुसार विश्वकर्मा जी जब भगवान सूर्य को गोलाकार देने के लिए भ्रमयन्त्र पर छील रहे थे भगवान सूर्य के तेज़ की छीलन से चक्र शूल और वज्र का निर्माण हुआ, चक्र विष्णु जी के कर कमलों मे सुदर्शन नाम से सुशोभित हुआ,शूल भगवान शिव के समीप स्वयं चला गया और वज्र इंद्र देव को विश्वकर्मा जी ने देवताओं की रक्षा के लिए प्रदान किया।
वामनपुराण के अनुसार कथा समुद्र मन्थन के पश्चात अमृत पान करते समय अदिति के पुत्र अर्थात आदित्य या देवताओं को अमृत प्राप्त हुआ परन्तु दिति के पुत्र अर्थात दैत्य मारे गए,
दिति अपने पुत्रों के मारे जाने पर अत्यंत दुखी होकर मरीच के पुत्र और अपने पति कश्यप से कहती हैँ की “हे भगवन तुम्हारे बलवान पुत्रों ने मेरे पुत्रों को मार डाला हैँ अतः मैं इंद्र को मारने वाला पुत्र चाहती हूँ।
भले ही वह घोर तप से ही क्यों न प्राप्त हो, उसके लिए मैं तप करुँगी, आप मुझे ऐसा गर्भ दीजिये. जिससे महाबलशाली, महाविजयी, दृढबुद्धि वाला समदर्शी, तीनों लोकों के स्वामी इंद्र को मारने वाला जन्मे, अपने पति के बताए नियनानुसार वो ऐसे पुत्र को जन्म देने की आशा से चली गयी और
दिति कुशप्लव नामक जंगल मे जा कर तपस्या करने लगी,इंद्र बहुत भयभीत हो गए और उस जंगल मे जा कर दिति की सेवा करने का अभिनय करने लगे,दिति ने अंततः इंद्र को क्षमा कर दिया और कहा कि तुम दोनों भाई एकसाथ ब्रह्मांड पर राज्य करना,
इंद्र को इस कथन पर विश्वास न हुआ और एक दिन उन्होंने दिति के गर्भ में प्रवेश कर अपने सौतले भाई के सात टुकड़े कर दिए उन सात टुकड़ो के और खण्ड करने और 49 उनचास मारुत बने, गर्भ के साथ एक मांसपिंड भी था ये मांसपिंड इंद्र का वज्र बना।
ऋग्वेद एवम भागवत पुराण में लिखा गया है दधीचि ऋषि की अस्थियों से इंद्र का वज्र बनाया गया,
ऐतरेय ब्राह्मण में इसका इस प्रकार विवरण है। दधीचि जब तक जीते थे, तब तक असुर उन्हें देखकर भाग जाते थे पर जब वे मर गए, तब असुरों ने उत्पात मचाना आरंभ किया, तो इंद्र ने पृथ्वी पर उनकी अस्थियों को ढूंढ कर उनसे एक वज्र का निर्माण कर के असुरों का वध किया।
एक अन्य कथा जो मुझे प्रिय है वो इस प्रकार से है
वृतासुर के जन्म का कारण
इंद्र देव ने गुरु बृहस्पति का अपमान किया वो देवताओं को छोड़कर दूर चले गए अतः देवताओं ने त्वष्टा ऋषि के पुत्र विश्वरूप को बृहस्पति की जगह दे दी।
परन्तु विश्वरूप सबसे छुपकर असुरों के यज्ञों में भाग लिया करते थे । जिसे लेकर इंद्र अप्रसन्न थे और एक दिन इंद्र ने विश्वरूप का वध कर दिया।
त्वष्टा ऋषि ने अपने पुत्र की हत्या के कारण इंद्र का वध करने के उद्देश्य से महाबली वृत्रासुर को जन्म दिया। महाबली वृत्रासुर के आतंक ने इंद्र को इतना भयभीत कर दिया था कि उन्होंने अपना सिंहासन छोड़ देवताओं के साथ इधर उधर भटकने लगे।
दधीचि ऋषि की अस्थियों से व्रज का निर्माण
इंद्र देव सहायता प्राप्त करने के लिए में ब्रह्मा जी के पास गए उन्होंने कहा आप महर्षि दधीचि जो कि सबसे बड़े तपस्वी है आप उनकी अस्थियां मांगे और इससे व्रज का निर्माण करें उनके तपोबल से उस असुर का अंत अवश्य होगा,
इंद्र ने जैसे ही ये सुना वो तुरंत अपनी रक्षा के लिए दधीचि के पहुंच गए,
दधीचि ऋषि से कहा वृत्तासुर से तीनों लोकों की सुरक्षा के लिए आपके शरीर की जरुरत है। क्योंकि आपके शरीर की अस्थियों से वज्र जैसा शस्त्र तैयार किया जाएगा।
महर्षि दधीचि ने इंद्र देव की प्रार्थना का उत्तर दिया, मैं सृष्टि के हित में अपना शरीर तुम्हें दान देता हूं और उन्होंने कुछ क्षणों में समाधि ले कर प्राण त्याग दिए । “
दधीचि के अस्थियों से वज्र बनाया गया ,और वृत्रासुर का वध किया गया ।
तो ऐसे महान महर्षि दधीचि थे जिन्होंने अपने शरीर का त्याग कर तीनों लोकों की रक्षा की ऐसे परोपकारी ऋषि को बारंबार नमस्कार है।