भागवतगीता श्रीकृष्ण के द्वारा दिए हुए ज्ञान का शास्त्र है लेकिन गीता भगवान शिव का ज्ञान शास्त्र है……. जानिए कैसे?

भगवान ने अवतरित होकर जो ज्ञान गाया, उस ज्ञान का नाम हो गया” गीता ” अथार्त “गाया हुआ “| अतः बाद मे भगवान के ज्ञान को जिस ग्रन्थ का नाम दिया गया, उसका नाम रखा गया ‘श्रीमदभागवतगीता ‘| भगवान के ज्ञान के उस ग्रन्थ को सभी बुद्धिमान और विचारवान लोग कल्याणकारी ग्रन्थ मानते है जिसमे जीवन के बहुत से रहस्यो को उजागर किया गया है |

एक महत्वपूर्ण बात यह है की ग्रन्थ कल्याणकारी है तो भगवान भी कल्याणकारी होगा और कल्याणकारी होने के कारण उनका नाम’ शिव ‘ है और गीता शास्त्र मे “भगवान ” ही के’ कल्याणकारी’प्रवचन और महावाक्य है निष्कर्ष निकलता है की भागवदगीता को हम “शिव गीता ” भी मान सकते है |भगवान शिव की अलौकिक महिमा का तो हम सबको पता है की संसार मे उनको इतनी ख्याति मिली है की वह अपने सभी भक्तो के दुख दूर कर देते है |

परन्तु सभी जानते है की आज श्रीमदभागवत गीता को श्रीकृष्ण द्वारा दिए हुए ज्ञान का शास्त्र मानते है |

श्रीकृष्णा को गीता ज्ञान दाता मानने का अर्थ श्रीकृष्ण को भगवान मानना होगा लेकिन श्रीकृष्ण नाम तो देहिक है जन्म होने के बाद रखा हुआ नाम है, जो ना तो कर्तव्य वाचक अथवा सम्बन्धवाचक नहीं है लेकिन भगवान के नाम मे ये दोनों होते है |ज्योतीलीगल शिव नाम से तो भगवान का ज्योति स्वरूप होना, कल्याणकारी पिता होने का बौद्ध होता है परन्तु श्रीकृष्ण नाम से ये दोनों सिद्ध नहीं होते है |अतः देह अथवा जीव के नाम को भगवान का नाम मानना भूल ही होंगी |

निर्णय हुआ की श्रीमदभागवतदगीता के ज्ञान दाता का नाम शिव है |देहिक शरीर का नाम तो माता पिता रखते है लेकिन भगवान का नाम स्व -कथित नाम है और भगवान तो सारे सृष्टि के माता पिता होते है | श्रीकृष्ण लौकिक जन्म पर आधारित नाम है लेकिन भगवान का नाम तो निजी अध्यात्मिक, अपरिवर्तनीय एवं अविनाशी है जिस पर संका की कोई गुंजाइस नहीं होती है ||

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