भारत में ट्रेन चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस कौन बनाता है?
भारत में आज की तारीख तक तो लगभग 99% ट्रेनें भारतीय सरकारी रेल विभाग के द्वारा ही चलाई जा रही हैं (आगे के आसार कुछ ठीक नजर नहीं आ रहे हैं)। और इन सभी रेलों को भारतीय रेल द्वारा भर्ती किए गए रेल चालकों द्वारा ही संचालित किया जाता है। भारतीय रेल में ट्रेन ड्राइवर कैसे बन सकते हैं? क्या इसके लिए कोई परीक्षा होती है? पढ़ सकते हैं।
इन्हें भर्ती के पश्चात संबंधित क्षेत्रीय रेल प्रशिक्षण संस्थान में विभिन्न लोकोमोटिवों के साथ ही रेलवे के ट्रैफिक एवं सुरक्षा नियमों के पाठ्यक्रमों का अध्ययन करने के उपरांत मौखिक एवं लिखित परीक्षाएं न्यूनतम 60% अंकों के साथ उत्तीर्ण करनी होती हैं।
इसी प्रशिक्षण के दौरान इन्हें विभिन्न लोकोमोटिवों का व्यवहारिक प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है। और सिम्युलेटर पर परीक्षा भी ली जाती है।
अब रिक्त स्थानों के हिसाब से इनके क्षेत्रीय रेल के अंतर्गत आने वाले विभिन्न मण्डलों में इनको पदस्थ कर दिया जाता है। यहाँ इनके मुख्यालय के हिसाब से इनको जिस खण्ड में ट्रेनों का संचालन करना है, उन खंडों की विस्तृत जानकारी लेनी होती है।
तत्पश्चात इनके विभाग प्रमुख, जो कि डीजल इंजनों के लिए वरिष्ठ मण्डल यांत्रिक अभियंता एवं विद्युत इंजनों के लिए वरिष्ठ मण्डल विद्युत अभियंता होते हैं, इनकी मौखिक परीक्षा लेते हैं, और इन्हें नामित खण्ड में ट्रेनों के संचालन के लिए उपयुक्त पाए जाने पर सक्षमता प्रमाण पत्र (Competency Certificate) प्रदान करते हैं, “जो कि एक पुस्तिका के रूप में जारी किया जाता है, और यही इनका ट्रेन चलाने का लाइसेंस होता है।”
इस सक्षमता पुस्तिका (Competency Book) में धारक ट्रेन चालक की पूरी जन्म कुंडली होती है, मसलन व्यक्तिगत ब्यौरे के साथ इनकी चिकित्सा जांच का विवरण, विभिन्न लोकोमोटिवों के प्रशिक्षण की जानकारी, उत्तीर्ण किए गए सुरक्षा पाठ्यक्रमों का ब्यौरा, किन खंडों पर ट्रेन के संचालन की अनुमति है इत्यादि इनके नवीनीकरण की तारीख के साथ, मतलब कब दोबारा चिकित्सा जांच की जानी है, जो कि 45 वर्ष की आयु तक हर चार साल बाद की जाती है, और उसके बाद हर दो वर्ष के बाद और लोकोमोटिवों एवं सुरक्षा पाठ्यक्रमों के लिए हर तीन वर्ष बाद वापस संबंधित क्षेत्रीय रेल प्रशिक्षण संस्थान में पुनश्चर्या पाठ्यक्रम के लिए जाना है। वहीं कुछ पाठ्यक्रमों के लिए ये अवधि एक वर्ष भी है तो कुछ लाइफ- टाइम भी होते हैं।
साथ ही ट्रेन संचालन के लिए इन्हें क्या- क्या चीजें जारी की गई हैं, उनका ब्यौरा भी इसी सक्षमता पुस्तिका में रहता है, जिन्हें व्यक्तिगत सामान के नाम से जाना जाता है।
कोई भी तारीख ओवर ड्यू होने पर नियमानुसार वो ट्रेन नहीं चला सकते, लेकिन सरकारी मामला है, अतः ट्रेन नहीं भी चलाएंगे तो बिना काम की तनख्वाह रेलवे को ही देनी पड़ेगी, इसीलिए अक्सर सभी औपचारिकताएं समय रहते या कभी- कभी तो नियत तारीख के पहले ही पूरी करवा दी जाती हैं।
तो इस तरह भारतीय सरकारी रेलों में ट्रेन चलाने के लिए चालकों का सक्षमता प्रमाण पत्र, यानी कि ड्राइविंग लाइसेंस, रेलवे द्वारा ही जारी किया जाता है।
जब भी कोई बड़े अधिकारी या पर्यवेक्षक फुट- प्लेट निरीक्षण के लिए लोकोमोटिव पर आते हैं तो उनको इस सक्षमता पुस्तिका को जांचने का अधिकार है। निरीक्षण के उपरांत या दौरान ही वे इसे सभी उपरोक्त चीजों के लिए जांचते हैं, मसलन कुछ ओवर ड्यू तो नहीं है। साथ ही वे ये भी जांच सकते हैं कि व्यक्तिगत सामान पूरा है, जिससे आपातकालीन परिस्थितियों में चालक उसका इस्तेमाल कर सके। इस पुस्तिका के अंत में अधिकारी एवं पर्यवेक्षको द्वारा किए गए निरीक्षण का ब्यौरा लिख कर यदि कोई विशेष टिप्पणी देनी है तो उसके लिए भी निश्चित जगह होती है, जिसे समय- समय पर चालक के नामित लोको निरीक्षक द्वारा भी जाँचा जाता है।