भीष्म पितामाह को कब पता लगा कि कर्ण, कुन्ती का पुत्र है?
महाभारत युद्ध के दसवें दिन पितामह भीष्म अर्जुन की बाण वर्षा (शिखंडी की ओट से) से घायल होकर शरशय्या पर लेटे हुये होते हैं, तब कौरव और पांडव पक्ष के सभी लोग उनके पास आए। उनके चले जाने के उपरांत कर्ण पितामह को एकांत में देखकर उनसे मिलने जाता है। पितामह को इस अवस्था में देख कर्ण सभी बैर भुलाकर भावुक हो जाता है, जिससे उस समय कर्ण की आखों में आंसू छलक आये होते हैं और अश्रुगद्गदगण्ठ होकर उसने पितामह को निद्रावस्था के समान बंद आँखों को देखकर पुकारा – पितामह भीष्म! ‘भीष्म! भीष्म! महाबाहो! कुरुश्रेष्ठ! मैं वही राधापुत्र कर्ण हूं, जो सदा आपकी आंखों में गड़ा रहता था और जिसे आप सर्वत्र द्वेषदृष्टि से देखते थे।’ मैं आपसे मिलने आया हूँ।
चित्रः शरशय्या पर पितामह
पितामह ने आंखे खोलकर कर्ण को देखा और सहर्ष उसके हाथ को स्पर्श कर बोले, तुम राधेय नहीं हो, तुम्हारे पिता अधिरथ नहीं हैं, ना तुम राधेय हो। तुम कुंती के पुत्र कौन्तेय हो।
यह बात कर्ण भी पहले से जानता था कि वो सूतपुत्र नहीं है, किन्तु वह यह नहीं जानता था कि यह बात पितामह भी जानते हैं। जब उसे इस बात का पता चला तो वो आश्चर्यचकित होकर पितामह से बोला, पितामह! आप भी जानते हैं कि मैं सूतपुत्र नहीं, कौन्तेय हूँ।
तब पितामह ने कर्ण को बताया –
हाँ, मैं जानता था मैंने नारदजी से तुम्हारा परिचय प्राप्त किया था।
उसके उपरांत पितामह बात को आगे बढ़ाते हुए बोले, महाबाहो! तुम कुंती और भगवान सूर्य के पुत्र हो। यह मुझे नारदजी से तुम्हारा परिचय पूछने पर ज्ञात था। इसके उपरांत श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास से भी तुम्हारे जन्म का वृत्तांत ज्ञात हुआ था और जो कुछ ज्ञात हुआ, वह सत्य है। इसमें संदेह नहीं हैं। तुम्हारे प्रति मेरे मन में द्वेष भी नहीं है; यह मैं तुमसे सत्य कहता हूँ।
निष्कर्ष – भीष्म पितामह को यह ज्ञात था, जो नारदजी और व्यास जी ने बताया किन्तु उन्होने यह भेद कभी खोला नहीं था। उन्हें यह भेद कब प्राप्त हुआ इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं है।