मकर संक्रान्ति के धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व क्या हैं?

मकर संक्रांति में ‘मकर‘ शब्द मकर राशि को इंगित करता है जबकि ‘संक्रांति’ का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं।

मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है। यह सूर्य आराधना का पर्व है , जिसे भारत के प्रांतों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। भारत के अलग-अलग प्रांतों में इस त्योहार को मनाए जाने के ढंग भी अलग हैं, लेकिन इन सभी के पीछे मूल ध्येय सूर्य की आराधना करना है।

आंध्रप्रदेश, केरल और कर्नाटक में इसे संक्रांति कहा जाता है और तमिलनाडु में इसे पोंगल पर्व के रूप में मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा में इस समय नई फसल का स्वागत किया जाता है और लोहड़ी पर्व मनाया जाता है, वहीं असम में बिहू के रूप में इस पर्व को उल्लास के साथ मनाया जाता है। हर प्रांत में इसका नाम और मनाने का तरीका अलग-अलग होता है।

मकर संक्रांति का धार्मिक तथा वैज्ञानिक दोनों ही महत्व है। सर्वप्रथम हम उसके संक्रांति का धार्मिक महत्व के बारे में जानेंगे।

संक्रांति का धार्मिक महत्व :

1)महराज भागीरथ का गंगा को धरती पर लाकर अपने पूर्वजों का तर्पण करना : महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था ।

एक अन्य कथा के अनुसार गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।

2)सूर्य का अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिएआना: पुराणों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है

हालांकि ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल संभव नहीं, लेकिन इस दिन सूर्य खुद अपने पुत्र के घर जाते हैं। इसलिए पुराणों में यह दिन पिता-पुत्र के संबंधों में निकटता की शुरुआत के रूप में देखा जाता है।

3) भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा :इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी।

उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।

4) देवताओं का दिन प्रारंभ : हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। कर्क संक्रांति से देवताओं की रात प्रारंभ होती है। अर्थात देवताओं के एक दिन और रात को मिलाकर मनुष्‍य का एक वर्ष होता है। मनुष्यों का एक माह पितरों का एक दिन होता है।

उनका दिन शुक्ल पक्ष और रात कृष्ण पक्ष होती है।

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व :

ऐसा कहा जाता है कि जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का योग बनता है. लेकिन इसके अलावा भी कई सारे बदलाव आते हैं. मकर संक्रांति का संबंध केवल धर्म से ही नहीं बल्कि अन्य चीजों से भी जुड़ा है, जिसमें वैज्ञानिक चीजें भी शामिल है. आइए जानते हैं मकर संक्रांति से जुड़े वैज्ञानिक कारण…

1)तिल गुण का सेवन सेहत के लिए लाभदायक:

मकर संक्रांति के समय उत्तर भारत में ठंड का मौसम रहता है। इस मौसम में तिल-गुड़ का सेवन सेहत के लिए लाभदायक रहता है यह चिकित्सा विज्ञान भी कहता है। इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है। यह ऊर्जा सर्दी में शरीर की रक्षा रहती है।

तिल में कॉपर, मैग्नीशियम, ट्राइयोफान, आयरन, मैग्नीज, कैल्शियम, फास्फोरस, जिंक, विटामिन बी 1 और रेशे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। एक चौथाई कप या 36 ग्राम तिल के बीज से 206 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है। यह गठिया रोग के लिए अत्यंत लाभकारी है|

2) खिचड़ी का सेवन से पाचन क्रिया दुरुस्त : इस दिन खिचड़ी का सेवन करने का भी वैज्ञानिक कारण है। खिचड़ी पाचन को दुरुस्त रखती है। अदरक और मटर मिलाकर खिचड़ी बनाने पर यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है और बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है।

3) नदियों में स्नान करने का महत्व :

मकर संक्रांति के समय नदियों में वाष्पन क्रिया होती है. इससे तमाम तरह के रोग दूर हो सकते हैं. इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है।

4) सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना : इस दिन से रात छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं. दिन बड़ा होने से सूर्य की रोशनी अधिक होती है और रात छोटी होने से अंधकार कम होता है. इसलिए मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है।

मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहा जाता है| इस दिन गंगा स्नान कर व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्त्व है|

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