महाभारत में “अर्जुन का रथ” जलने का रहस्य क्या है?
अर्जुन ही अनुराग है, रथ ही शरीर है, घोड़े ही इंद्रियां है, धनुष ही ध्यान है, कृष्ण ही अन्तर्मन के योगी है, हनुमान ही सन्त है। युद्ध काल मे जब अनुराग रूपी अर्जुन ने अन्तःकरण की बुराई अर्थात कौरव सेना को ध्वस्त कर दिया तो रथ अर्थात शरीर त्यागने का समय आ गया।
साधक जब महाभारत रूपी अन्तःकरण में युद्ध शुरू करता है जहाँ उसका शरीर ही रथ है, इन्द्रिय ही घोड़े है। उन इंद्रियों को स्वयं श्री कृष्ण जो कि अन्तर्मन स्वरूप है ही लगाम लगाते है। अर्जुन रूपी अनुराग ने ध्यान रूपी धनुष से शरीर के समस्त विकारों को नष्ट कर दिया तो अब मोक्ष की बारी आई अर्थात शरीर से मोह टूटना हुआ।
रथ ही शरीर है। रथ को त्यागने के लिए अर्जुन और कृष्ण और हनुमान रूपी सन्त अब दूर हो जाते है तो ये कायरूपी रथ तो नष्ट होना ही है। शरीर चाहे किसी भी साधक का हो। किसी भी योगी का हो। अंत मे नष्ट तो होगा ही होगा। यहाँ सिकन्दर भी आये है, बुद्ध भी आये है। लेकिन शरीर कोई साथ लेके नही गया। इसी शरीर का यही जल जाना ही रथ का जल जाना है।