महाशिवरात्रि मनाने का क्या कारण है? यह शिव के महत्व को कैसे प्रदर्शित करती है?

पूरे भारत में महाशिवरात्रि पर्व को शिव-पार्वती विवाह की तिथि के रूप में मनाया जा रहा है, लेकिन ये बात कम ही लोग जानते हैं कि शिव-पार्वती का विवाह फाल्गुन (फरवरी-मार्च) मास में नहीं, बल्कि मार्गशीर्ष माह (नवंबर-दिसंबर) में हुआ था। महाशिवरात्रि पर भगवान शिव पहली बार लिंग रूप में प्रकट हुए थे। कुछ विद्वानों का मानना है कि शिवलिंग में शिव और पार्वती दोनों समाहित हैं, दोनों ही एक साथ पहली बार इस स्वरूप में प्रकट हुए थे, इस कारण महाशिवरात्रि को भी शिव-पार्वती विवाह की तिथि के रूप में मनाया जाता है।

रुद्रसंहिता जो शिव महापुराण का ही एक अंश है, उसके मुताबिक शिव-पार्वती के विवाह की तिथि मार्गशीर्ष माह (अगहन मास) के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को आता है, जो इस वर्ष 1 दिसंबर को है। वहीं, ईशान संहिता में वर्णन है कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान लिंग रूप में प्रकट हुए थे। इसी को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।

ईशान संहिता: शिव के लिंग रूप में प्रकट होने का दिन शिवरात्रि

ईशान संहिता ग्रंथ में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मध्य रात्रि में भगवान शिव, लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। पहली बार शिवलिंग की पूजा भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी द्वारा की गई थी। इसलिए महाशिवरात्रि पर्व को भगवान शिव के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है और शिवलिंग की पूजा की जाती है।

माघकृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि
शिवलिंगतयोद्रूत: कोटिसूर्यसमप्रभ॥ (ईशान संहिता)

शिव पुराण: शिव विवाह की तिथि मार्गशीर्ष में

शिवपुराण के 35 वें अध्याय में रूद्र संहिता के अनुसार महर्षि वसिष्ठ ने राजा हिमालय को भगवान शिव और पार्वती विवाह के लिए समझाते हुए विवाह का मुहूर्त मार्गशीर्ष माह में होना तय किया था। जिसके बारे में इस संहिता ग्रंथ के 58 से 61 वें श्लोक में बताया गया है

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