मां काली ने रक्तबीज का वध कैसे किया था? जानिए

रक्तबीज एक ऐसा दानव था जिसे यह वरदान था की जब जब उसके लहू की बूंद इस धरती पर गिरेगी तब तब हर बूंद से एक नया रक्तबीज जन्म ले लेगा जो बल , शरीर और रूप से मुख्य रक्तबीज के समान ही होगा |

अत: जब भी इस दानव को अस्त्रों ,शस्त्रों से मारने की कोशिश की जाती , उसके लहू की बूंदों से अनेको रक्तबीज पुनः जीवित हो जाते | रक्तबीज दैत्यराज शुम्भ और निशुम्भ का मुख्य सेनानायक था और उनकी सेना का माँ भगवती के विरुद्ध प्रतिनिधित्व कर रहा था |

शिव के तेज से प्रकट माहेश्वरी देवी , विष्णु के तेज से प्रकट वैष्णवी , बह्रमा के तेज से बह्रमाणी भगवती के साथ मिलकर दैत्यों से युद्ध कर रही थी | जब भी कोई देवी रक्तबीज पर प्रहार करती उसकी रक्त की बूंदों से अनेको रक्तबीज पुनः जीवित हो उठते | तब देवी चण्डिका ने काली माँ को अपने क्रोध से अवतरित किया | माँ काली विकराल क्रोध वाली और उनका रूप ऐसा था की काल भी उन्हें देख कर डर जाये |

देवी ने से कहा की तुम इस असुर की हर बूंद का पान कर जाओ जिससे की कोई अन्य रक्तबीज उत्पन्न ना हो सके | ऐसा सुनकर माँ काली ने रक्तबीज की गर्दन काटकर उसे खप्पर मे रख लिया ताकि रक्त की बूँद नीचे ना गिरे और उसका सारा खून पी गयी , बिना एक बूँद नीचे गिरे | जो भी दानव रक्त से उनकी जिह्वा पर उत्पन्न होते गए उनको खाती गई | इस तरह अंत हुआ रक्तबीज और उसके खून का |

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