मां जैसा कोई नहीं दिल को छू जाने वाला एक सच्ची कहानी,जानिए
10 साल पुरानी बात है जब भाई 5 वीं कक्षा में पढ़ता था तब पिताजी का कैंसर की बीमारी के कारण निधन हो गया था। भाई को पिताजी की मौत का गहरा सदमा लगा था लेकिन क्या करें इस सदमे को सहना पड़ता है, जो हम सभी ने मिलकर सहा है। कुछ सालों के बाद सिर्फ पिताजी के यादों के सहारे हम काम चला लेते थे। हमारी पढ़ाई का खर्चा चलाने के लिए, मां जी ने एक छोटी सी फैक्टरी में काम करना शुरू कर दिया था।
घर का खर्चा चलाने के लिए भाई स्कूल के बाद एक किराने कि दुकान पर काम करने जाते थे। ऐसा करीब 5-6 सालों तक चलता रहा भाई बहुत पढ़ाई करते थे। आज भी मुझे याद है, भाई ने पूरी कक्षा में पूरे स्कूल में सबसे ज्यादा अंक प्राप्त किया था। दसवीं कक्षा के बाद भाई को बाहर पढ़ने जाना था। अब हमारे पास इतने पैसे नहीं थे, की भाई को पढ़ाई के लिए बाहर भेज सकें।
लेकिन भाई के जिद और हिम्मत के आगे हमें हारना पड़ा। भाई ने किराने वाले अंकल से बात की और वहां रहने के बजाए, हर रोज 10 किलोमीटर स्कूल जाते थे। और वापस घर आकर खाना खाने के बाद काम पर चले जाते थे । 2 साल की मेहनत के बाद भाई ने 12 कक्षा में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया।
12 कक्षा के बाद भाई ने कॉलेज में एडमिशन लिया और पढ़ाई शुरू कर दी भाई अब वहीं रूम लेकर रहते थे। कुछ पैसे स्कॉलरशिप में मिले थे, तो कुछ पैसे भाई ने कमा कर रखा था। उसके बाद भाई ने कॉलेज में भी मन लगाकर पढ़ना शुरू कर दिया और 5 साल तक भाई लगातार पढ़ाई करते रहे और उन्होंने हर साल अपने कॉलेज में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
उसके बाद पढ़ाई पूरा करके भाई को कलेक्टर कलेक्टर की नौकरी लग गई मां और मैं बहुत खुश थे अब हमारी सारी समस्याओं का हल हो चुका था।