विषकन्याओं के बनाये जाने के पीछे का क्या विज्ञान है?

हमारे सिविल इंजीनियरिंग में एक विषय होता है- Environmental Engineering ( पर्यावरण अभियांत्रिकी) *इंजीनियरिंग के छात्र जानते होंगे।

इस विषय में पानी की गुडवत्ता के मानकों से संबंधित पढ़ाई होती है कि किस प्रकार पानी को साफ किया जाता है, पानी में कौन सी चीज़ कितनी मात्रा में होनी चाहिए इत्यादि।

जब यह विषय कक्षा में पढ़ाया जा रहा था तब हमारे प्रोफ़ेसर, पानी में पाए जाने वाली अलग-अलग प्रकार की अशुध्दियों को समझा रहे थे।

ऐसा ही एक जहरीला पदार्थ बताया गया था – आर्सेनो-पाइराइट[1]

यह जहरीला पदार्थ किसी किसी क्षेत्र में गहरे ट्यूबवेल में पाया जाता है।

पाइराइट को Fool’s Gold[2]( मूर्ख का सोना ) भी कहा जाता है।

तो यही पढ़ाते वक्त उन्होंने इससे जुड़ी एक रोचक कहानी साझा की ,कि इस पदार्थ से किस प्रकार विषकन्याओं को बनाया जाता था।

प्राचीन काल में छोटी बच्चियों को यही आर्सेनोपाइराइट बेहद कम मात्रा में दिया जाता था।

ऐसे करते करते इस पदार्थ की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाई जाती थी।

बच्चियों के यौनवस्था तक पंहुचते-पंहुचते उन लड़कियों की इस जहर के प्रति प्रतिरोधक क्षमता इतनी बढ़ जाती थी कि जहर की बड़ी खुराक का असर ही नहीं होता था।

जब यही विषकन्यायें[3]किसी को मारने के लिए भेजी जाती थीं, तो यह चुम्बन या यौन-संबंध के माध्यम से उस व्यक्ति के शरीर में जहर फैला देती थीं।

विषकन्याओं की लार की एक बून्द भी किसी बड़े से बड़े आदमी को आसानी से मारने में सक्षम थी।

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