शिवजी ने भगवान नरसिंह का वध क्यों किया ?

पहली बार तो यह सवाल ही उचित नहीं है क्योंकि भगवान नरसिंह भगवान विष्णु के उग्रावतार हैं, और उनका वध नहीं किया जा सकता है।

तो इस प्रकार आपका प्रश्न होना चाहिए कि भगवान शिव ने भगवान नरसिंह का क्रोध कैसे शांत किया?

अब आते हैं इस सवाल के जवाब पर जो इस प्रकार है –

भगवान नरसिंह और शिव के युद्ध के परिणाम के विषय में वैष्णव और शैव संप्रदाय के अलग-अलग मत हैं,

१. हिरण्यकश्यपु का मत करने के पश्चात भी भगवान नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ, उनकी क्रोधाग्नि से संपूर्ण ब्रह्मांड जलने लगा। तब देवताओं ने जाकर भगवान शिव से प्रार्थना की अब वे भगवान नरसिंह को शांत करने का कोई उपाय निकालें। देवताओं के आग्रह पर भगवान शिव ने शरभ अवतार (जिसका आधा शरीर शेर का आधा मनुष्य का और आधा गरुड़ का था ) धारण किया और नरसिंह से युद्ध किया। युद्ध में भगवान शरभ ने भगवान नरसिंह को अपनी पूंछ में पकड़ कर आसमान में ले उड़े, और तब तक प्रहार करते रहे जब तक भगवान नरसिंह का क्रोध शांत ना हो गया । क्रोध शांत होने के बाद भगवान नरसिंह ने भगवान शरभ की स्तुति की और फिर बैकुंठ की ओर प्रस्थान किया।

२. दूसरे मत के अनुसार भगवान नरसिंह ने भगवान शरभ को इस युद्ध में पराजित कर दिया था और युद्ध के पश्चात भगवान शरभ ने भगवान नरसिंह की स्तुति की, इस स्तुति को सुनकर भगवान नरसिंह का क्रोध शांत हो गया ।

३. तीसरे मत के अनुसार जब भगवान नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ तो देवताओं ने भक्त प्रहलाद से कहां की अब केवल भक्ति की शक्ति के द्वारा भगवान सिंह को शांत किया जा सकता है। इसलिए तब प्रह्लाद ने प्रेम पूर्वक भगवान की स्तुति करी, इस प्रकार प्रहलाद की स्तुति से भगवान नरसिंह का क्रोध शांत हो गया ।

शायद इसीलिए कहा जाता है कि “भक्त के बस में है भगवान ” ।

४. चौथे मत के अनुसार जब भगवान शरभ ने भगवान नरसिंह को पराजित किया तो भगवान नरसिंह ने भगवान शरभ की स्तुति करी। परंतु अब एक नयी समस्या उत्पन्न हो गयी, अब भगवान शरभ का क्रोध शांत ही नहीं हो रहा था । यह देख कर अब भगवान नरसिंह ने फिर से एक नया अवतार धारण किया जिसे गंडभेरुंड के नाम से जाना जाता है। जो दो सर वाले पक्षी और मानव का मिश्रित रूप था। अपने इस रूप में भगवान नरसिंह ने फिर से भगवान शरभ को पराजित किया। इसके बाद भगवान शिव ने भगवान विष्णु की स्तुति की और दोनों अपने अपने लोको को चले गए।

हालांकि यह मत ज्यादा प्रचलित नहीं है, इस कथा का वर्णन केवल दक्षिण भारतीय कथाओं और तंत्र शास्त्र में मिलता है इसलिए शैव संप्रदाय के लोगों का मानना है कि यह कथा वैष्णव द्वारा भगवान विष्णु को श्रेष्ठ बताने के लिए ही बनाई गई है।

ठीक ऐसा ही वैष्णवो का भगवान शरभ द्वारा भगवान नरसिंह को पराजित करने की कहानी के लिए भी कहा जाता है।

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