शिव के परम भक्त रावण ने बनाई थी स्वर्ग तक जाने की सीढ़ी

आपने रामायण में पढ़ा होगा और टीवी पर भी रावण की कहानी ज़रूर देखी होगी… रावण अपने आप में बहुत खास इंसान था। वह एक प्रकांड विद्वान् होने के साथ-साथ उच्च कोटि का ज्योतिषशास्त्री भी था। रावण भगवान शिव के परम भक्त हुआ करते था और वह अपनी भक्ती से बहुत बार भगवान भोलेनाथ को खुश भी कर चुका था और शिव से सिद्धियां भी प्राप्त की थीं।

ऐसा मानना है कि जब पहली बार रावण के मन अमर होने का खयाल आया तब उसने भगवान शिव को खुश कर अमर होने का वरदान प्राप्त करने के लिए वह हजार वर्षों तक कठिन तपस्या करता रहा।

रावण को कैसे मिला था अमरता का वरदान –

रावण की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव खुद रावण के सामने प्रकट हुए और उससे वर मांगने की बात कह डाली। वहीं, रावण ने वरदान में उन्हें अमरता का वरदान देने की प्रार्थना की। रावण की भक्ति से खुश भगवान शिव ने उसे तथास्तु तो कहा, लेकिन इसके साथ ही एक शर्त भी रख दी कि उसे अमरता तभी प्राप्त होगा जब वह एक दिन में लगभग पांच पौड़ियों का निर्माण कराएगा। अगर वह ऐसा नहीं कर पाता है तो भगवान शिव का यह वरदान भी बेकार हो जाएगा।

रावण ने इस शर्त को लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई बल्कि उसे तो यह शर्त बहुत आसान सा लगा। बस इस तरह उसने अमरता का वरदान पाने के लिए पौड़ियों के निर्माण के साथ-साथ स्वर्ग तक जाने की सीढ़ियां भी बनानी शुरू कर दी।

रावण की वह 4 पौड़ी –

• रावण ने पहली पौड़ी हरिद्वार में बनाई थी जो आज ‘हर की पौड़ी’ के नाम से लोकप्रिय है।

• वहीं, दूसरी पौड़ी रावण ने हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के नाहन से सात किलोमीटर की दूरी पर बनाई थी, जिसे आज पौड़ीवाला मंदिर के नाम से जाना जाता है।

• जो तीसरी पौड़ी है वह है चुड़ेशवर महादेव।

• और चौथी पौड़ी रावण ने किन्नर कैलाश में बनाई थी।

ऐसी मान्यता है कि इन चार पौड़ियों का निर्माण होते-होते काफी रात हो गई थी और रावण भी थक चुका था। अपनी थकान को दूर करने के मकसद से वह थोड़ी देर लेट गया जिससे उसकी आंख लग गई औऱ वह गहरी नींद में सो गया। जब रावण की नींद खुली तब तक देर हो चुका था। अपनी नींद की वजह से रावण स्वर्ग तक जाने वाली सीढ़ियों का निर्माण नहीं करा पाया। बस इसी एक भूल से वह अमरता का वरदान प्राप्त नहीं कर सका।

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