श्री कृष्ण के द्वारका मंदिर का निर्माण किसने किया था?

लगभग 2,200 साल पुराना है यह कृष्ण मंदिर, तीनों लोकों में माना जाता है सबसे सुंदर।

गुजरात के द्वारका में स्थित यह पवित्र कृष्ण मंदिर तीनों लोकों में सबसे सुंदर मंदिर के रुप में जाना जाता है। इस मंदिर को हिंदुओं का प्रमुख व महत्वपूर्ण स्थान के रुप में देखा जाता है। मंदिर में स्थापित श्री कृष्ण की द्वारकाधीश के रुप में पूजा की जाती है। द्वारका द्वापर युग में भगवान कृष्ण की राजधानी थी और आज कलयुग में यह स्थान भक्तों के लिए महा तीर्थ माना जाता है।

गोमती नदी के तट पर स्थापित यह मंदिर बहुत ही सुंदर व अद्भुत है यही नहीं इस स्थान पर गोमती नदी अरब सागर से मिलती है। द्वारकाधीश उपमहाद्वीप पर भगवान विष्णु का 108वां दिव्य मंदिर है, दिव्य प्रधान की महिमा पवित्र ग्रंथों भी मानी जाती है। द्वारकाधीश मंदिर हिंदूओं का पवित्र धाम चार धाम में से एक तीर्थ माना जाता है।

श्री कृष्ण के पोते ने किया था मंदिर का निर्माण

मान्यताओं के अऩुसार मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पोते वज्रभ द्वारा किया गया था और 15वीं-16वीं सदी में मंदिर का विस्तार हुआ था। पुरातात्व विभाग द्वारा बताया जाता है की यह मंदिर करीब 2,200-2000 साल पुराना है। जगत मंदिर के नाम से जाना जाने वाला यह द्वारकाधीश मंदिर 5 मंजिला इमारत का तथा 72 स्तंभों द्वारा स्थापित किया गया है। मंदिर का शिखर करीब 78.3 मीटर ऊंची है। मंदिर के ऊपर स्थित ध्वज सूर्य और चंद्रमा को दर्शाता है, जो कि यह संकेत मिलता है कि पृथ्वी पर सूर्य और चंद्रमा मौजूद होने तक कृष्ण होगा। झंडा दिन में 5 बार बदला जाता है, लेकिन प्रतीक एक ही रहता है।

चूना पत्थर से हुआ है मंदिर का निर्माण

इस प्राचीन व अद्भउत मंदिर का निर्माण चूना पत्थर से किया गया है, जो आज भी अपनी स्थिति में खड़ा हुआ है। मंदिर में मूलतः दो प्रवेश द्वार हैं मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर द्वार को मोक्षद्वारा द्वार कहा जाता है। यह प्रवेश द्वार मुख्य बाजार में ले जाता है। दक्षिण द्वार को स्वर्ग द्वार कहा जाता है।

मंदिर को लेकर पौराणिक कथा

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वारका कृष्ण द्वारा भूमि के एक टुकड़े पर बनाया गया था जिसे समुद्र से पुनः प्राप्त किया गया था। ऋषि दुर्वासा ने एक बार कृष्णा और उनकी पत्नी रूक्मणी जी का दर्शन किया। ऋषि ने कामना की कि भगवान श्रीकृष्ण और रूक्मणी उनके साथ उनके निवास स्थान पर चले। यह भगवान श्रीकृष्ण और रूक्मणी सहमत हो गये और उनके निवास स्थान के लिए ऋषि के साथ चलना शुरू कर दिया। कुछ दूरी के बाद, रुक्मणी थक गई और उन्होंने श्रीकृष्ण से पानी का अनुरोध किया। श्रीकृष्ण ने एक पौराणिक छेद खोला और पानी को गंगा नदी से उस जगह लाये। ऋषि दुर्वासा उग्र थे और रुक्मिणी को उसी जगह रहने के लिए शाप दिया था। द्वारकाधीश मंदिर उस जगह पर माना जाता है जहां रूक्मणी खड़ी थी।

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