हर दिवाली पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति को बदलना आवश्यक क्यों है?

दिवाली के दिन माता लक्ष्मी और श्री गणपति जी की पूजा का बहुत महत्व है। इनकी पूजा के बिना यह त्यौहार अधूरा रहता है।नई मूर्ति की पूजा हर साल मूर्ति बदलने को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं।

कई लोग इसे मंदिर में मूर्ति बदलने का एक अवसर मानते हैं तो कुछ लोग लक्ष्मी गणेश जी की नई मूर्ति की पूजा को धर्म से जोड़ते हैं।

पुराने समय में सिर्फ धातु और मिट्टी की मूर्तियों का चलन था। धातु की मूर्ति से ज्यादा मिट्टी की मूर्ति की पूजा होती थी। नई मूर्ति एक अध्यात्मिक विचार का भी संचार करती है।

दिवाली पर हर साल लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति की पूजा की जाती है। दिवाली पर पूजा के लिए नई मूर्ति खरीदने से घर में शुभता आती है ।

लेकिन अक्सर मन में यह प्रश्न उठता है कि आखिर दिवाली पर मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा को अन्य देवताओं की अपेक्षा इतनी वरीयता क्यों नहीं जाती है।

गणपति को बुद्धि के देवता कहा गया हैं। हिंदू धर्म में कोई पूजा पाठ और कर्मकांड गणपति की पूजा के बिना शुरू नहीं किया जाता दीपावली पर गणपति पूजा की यह भी एक वजह है । साथ ही धन की देवी पूजा से समृद्धि का आशीर्वाद देने के बाद व्यक्ति को सद्बुद्धि की आवश्यकता होती है ताकि वह धन का प्रयोग सही कार्यों के लिए करें। ऐसी प्रार्थना के लिए दिवाली पर गणपति जी की पूजा लक्ष्मी जी के साथ की जाती है ।

प्रथम पूजनीय गणपति हमें सद्बुद्धि प्रदान कर पर आगे बढ़ने का वरदान दें। दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का महत्व महालक्ष्मी धन की देवी है यह हम सभी जानते हैं मां लक्ष्मी की कृपा से ही ऐश्वर्य और वैभव की प्राप्ति होती है ।

कार्तिक अमावस्या के पावन तिथि पर धन की देवी को प्रसन्न करने का तथा आशीर्वाद लेने के लिए माता लक्ष्मी का पूजन किया जाता हैं। दीपावली से पहले आने वाले शरद पूर्णिमा के त्यौहार को मां लक्ष्मी के जन्म उत्सव की तरह मनाया जाता है। फिर दीपावली पर उनका पूजन किया जाता हैं।

रामायण में इस बात का प्रमुखता से उल्लेख किया गया है कि भगवान जब लंका के राजा रावण का वध करके पत्नी सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ अयोध्या आए थे तो उस दिन पूरी अयोध्या नगरी को दीपों की रोशनी से सजाया गया था। अपने प्रभु के आगमन पर अयोध्या में दीपावली मनाई गई थी तब से दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है।

धार्मिक विश्वास

दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है।जबकि इससे पूर्व माता का जन्मोत्सव शरद पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक रीति के अनुसार मां लक्ष्मी की पूजा का प्रमुख दिन शरदपूर्णिमा ही है।

जबकि दीपावली के दिन मां काली की पूजा मुख्य होनी चाहिए।इसका कारण यह है कि अमावस्या की रात मां काली कालरात्रि की रात होती है। जबकि शरद पूर्णिमा की रात धवल रात होती है और लक्ष्मी जी का प्राकट्य दिवस भी होता है ।शरद पूर्णिमा पर ही देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से उत्पन्न हुई थी। अमावस्या तिथि का स्वरूप मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप से संबंधित है और शरद पूर्णिमा का धवल स्वरूप मां लक्ष्मी के रूप से इसलिए शरद पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी और दीपावली पर मां काली की पूजा करनी चाहिए।

बदलते समय और बाजारवाद के हावी होने के साथ ही दीपावली पर लक्ष्मी पूजा को प्राथमिकता दी जाने लगी हालांकि दीपावली पर महालक्ष्मी, कालरात्रि, गणपति के साथ ब्रह्मा,विष्णु और महेश की पूजा की जानी चाहिए।

पूजा के समय ब्रह्मा जी के बायीं ओर देवी सरस्वती, विष्णु जी के बायीं ओर देवी लक्ष्मी और शिव जी के बायीं ओर मां पार्वती व विराजमान होनी चाहिए।

पूजा घर में रखने के लिए लक्ष्मी और गणेश की ऐसी मूर्ति लेना चाहिए जिसमें दोनों विग्रह अलग-अलग हो। गणेश की मूर्ति में उनकी सूंड बाएं हाथ की तरफ मुड़ी होनी चाहिए। दाएं तरफ मुड़ी सूंड शुभ नहीं होती।

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