हिंदुओं में जब भगवान को प्रसाद चढ़ाया जाता है तो वह प्रसाद घटता क्यों नहीं इसके पीछे का अनोखा रहस्य

आज हम बात करने वाले हैं कि जो प्रसाद हम भगवान को चढ़ाते हैं वह प्रसाद भगवान खाते हैं या नहीं खाते खाते हैं तो वह प्रसाद घटता क्यों नहीं है तो चलिए शुरू करते हैं और जानते हैं इसके पीछे का सच

श्रीमद् भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण चंद्र जी कहते हैं कि जो कोई भक्त प्रेम पूर्वक फूल फल अन्न जल आदि अर्पण करता है उसे मैं प्रेम पूर्वक सगुण रूप में प्रकट होकर ग्रहण करता हूं भक्तों की भावना हो तो भगवान एक बार नहीं बल्कि अनेकों बार उपस्थित होकर भोजन ग्रहण करते हैं

प्रमाण स्वरूप शबरी द्रोपती विदुर सुदामा आदि भगवान ने प्रेम पूर्ण के हाथों से भोजन किया मीराबाई के विष का प्याला भगवान स्वयं पी गए कुछ लोग कार्तिक बुद्धि का उपयोग करते हुए कहते हैं कि जब भगवान खाते हैं तो चढ़ाया हुआ प्रसाद क्यों नहीं घटता

उनका कथन सत्य है पर जिस प्रकार पुष्प ऊपर भमर भरे बैठते हैं और पुष्प की सुगंध से तृप्त हो जाते हैं किंतु पुष्प का भार वजन घटता नहीं है उसी तरह भगवान की सेवा में चढ़ाया गया प्रसाद होता है व्यंजन की दिव्य सुगंध और भक्तों के प्रेम से ही भगवान तृप्त हो जाते हैं इस तरह भगवान तृप्त भी हो जाते हैं और प्रसाद भी कम घटता नहीं हैं इसी प्रकार नियमित पूजा पाठ करने से भगवान भी प्रसन्न रहते हैं भक्तों से और मनचाहा वरदान भी देते हैं

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