होशियारी डेढ़ होशियारी की – कहानी
एक दिन की बात है, एक युवान दलीचंद सेठ के यहाँ आया…… और विनंति भरे स्वर में बोला। ‘सेठजी मुझे नौकरी दीजिए…..’ दलीचंद सेठ ने कहा…… ‘मैं तुझे काम पर तो रखता हूँ, परंतु मेरी एक शर्त है, मैं तुझे काम करने का कहु तब तुझे तीन काम करने होंगे….. बोल है मंजूर…..। हां, जी! आपके द्वारा एक काम कहने पर, मैं तीन काम जरुर करुंगा। सेठ उसके हाँ कहने से खुश हो गया और उसे तुरंत ही काम पर रख लिया…..।
‘अभी से ही तुम काम पर रह जाओ। युवान ने तुरंत जवाब दिया…. ‘आपने तो सिर्फ रहने को ही कहा है, परंतु आपकी शर्त अनुसार आपके यहाँ रहुँगा, खाना खाउंगा और कपड़े भी आपके यहाँ के पहनुंगा। सेठ तो एकदम खुश हो गए और बोले ‘हाँ भाई, रहना, खाना और कपड़े भी मेरे ही पहनना। परंतु काम बराबर करना। ‘युवक! मैं तुम्हारा नाम तो पूछना भूल ही गया। युवक ने जवाब दिया – ‘होशियार’।
जैसा नाम वैसा ही होशियार है तु….. सेठ बोले। युवक तपाक से बोला ‘सिर्फ होशियार ही नहीं , परंतु डेढ़ होशियार हूँ मैं। युवक सेठ सेठानी का हर काम एकदम तन – मन से करने लगा और कुछ ही समय में दोनों का दिल जीत लिया। एक दिन सेठ छाती में दुखने की वजह से बहुत बीमार पड़े तब सेठानी ने होशियार को डाक्टर बुलाकर लाने को कहा। होशियार ने तुरंत जवाब दिया, सेठानी जी आप चिंता न करें, अभी ही मैं तुरंत डाक्टर को ले आता हूँ।
राह में जाते हुए उसने विचार किया सेठ बीमार पड़े हैं, शायद मर भी जाए तो क्यों न साथ में अंतिम क्रिया कर्म की सामग्री भी ले जाऊं। साथ में सेठ के सगे संबंधियों को भी खबर कर दूं कि वे सब समय पर श्मशान घाट में हाजीर रहें। होशियार डाक्टर के पास गया और बोला ‘मेरे सेठ की तबीयत छाती में दुखने की वजह से खराब हुई है, आप हमारे घर जाईये, तब तक मैं और काम करके आता हूँ।