दिल्ली का लाल किला किसने और कब बनवाया था?
लाल क़िला, दिल्ली के ऐतिहासिक, क़िलेबंद, पुरानी दिल्ली के इलाके में स्थित, लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। यद्धपि यह किला काफी पुराना है और ईस किले को पाँचवे मुग़ल शासक शाहजहां ने अपनी राजधानी के रूप में चुना था। इस किले को “लाल किला”, इसकी दीवारों के लाल-लाल रंग के कारण कहा जाता है। इस ऐतिहासिक किले को वर्ष २००७ में यूनेस्को द्वारा एक विश्व धरोहर में चयनित किया गया था।
यह किला भी ताजमहल और आगरे के किले की भांति ही यमुना नदी के किनारे पर स्थित है। लालकोट राजा [पृथ्वीराज चौहान]] की बारहवीं सदी के अन्तिम दौर में राजधानी थी। वही नदी का जल इस किले को घेरकर खाई को भरती थी। इसके पूर्वोत्तरी ओर की दीवार एक पुराने किले से लगी थी, जिसे सलीमगढ़ का किला भी कहते हैं।
सलीमगढ़ का किला इस्लाम शाह सूरी ने 1546 में बनवाया था। लालकिले का पुनर्निर्माण 1638 में आरम्भ होकर 1648 में पूर्ण हुआ। मतों के अनुसार इसे लालकोट का एक पुरातन किला एवं नगरी बताते हैं, जिसे शाहजहाँ ने कब्जा़ करके यह किला बनवाया था
ज्यादातर लोगों के ये पता है कि दिल्ली का लालकिला शाहजहाँ ने बनवाया था और अक्सर यहीं पढ़ाया भी जाता है. लेकिन ऐसा नहीं है और दिल्ली का लालकिला शाहजहाँ के जन्म से सैकड़ों साल पहले ही बन चुका था. लालकिले के कुछ ऐसे पुरानी चीजों के मिलने से यह अंदाजा भी लगाया गया है कि यह पहले से ही बना हुआ था.
बता दें कि “महाराज अनंगपाल तोमर द्वितीय” द्वारा दिल्ली को बसाने के क्रम में ही बनाया गया था. दिल्ली का लाल किला शाहजहाँ से भी कई शताब्दी पहले पृथवीराज चौहान द्वारा बनवाया हुआ है. महाराज अनंगपाल तोमर और कोई नहीं बल्कि महाभारत के अभिमन्यु के वंशज तथा महाराज पृथ्वीराज चौहान के नाना जी थे.
इतिहास के अनुसार लाल किला का असली नाम “लाल कोट” है, जिसे महाराज अनंगपाल द्वितीय द्वारा सन 1060 ईसा पूर्व में दिल्ली शहर को बसाने के लिए बनाया गया था. जबकि शाहजहाँ का जन्म ही उसके सैकड़ों वर्ष बाद 1592 ईसा पर्व में हुआ है.
ऐसा कहा जाता है कि शाहजहाँ नामक मुसलमान ने इसे बसाया नहीं बल्कि पूरी तरह से नष्ट कर दिया था और पूरी कोशिश की थी कि ऐसा लगे की वह उनके द्वारा बनाया गया हो. इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह हैं, जो तारीखे फिरोजशाही के पृष्ट संख्या 160 में लिखा गया है कि सन 1296 के अंत में जब अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर दिल्ली आया तो वो कुश्क-ए-लाल कि ओर बढ़ा और वहां उसने आराम किया, केवल इतना ही नहीं अकबरनामा और अग्निपुराण दोनों ही जगह इस बात का वर्णन किया गया हैं।