अपराधियों को जमानत पर क्यों रिहा कर दिया जाता है?

जैसे ही कोई अपराध होता है तो पुलिस उस अपराध की छान-बीन करती है और उस अपराध को करने वाले व्यक्ति को आरोपी बनाती है। और ऐसे आरोपी के विरुद्ध सबूतो गवाहों को सुनने देखने के बाद अदालत किसी आरोपी को दोष सिद्ध करने के बाद अपराधी बनाती है। अब जब मुकदमा पूरा हो चुका और अपराधी सभी अगली अदालतों से भी दोषी करार दे दिया गया, तो वह किये गए अपराध की सज़ा काटता है, और अपराधी कहलाता है।

तो आरोपी अपराधी कहलाता ही जब है, जब उसको अंतिम अदालत भी दोषी करार दे देती है, अपराधी करार होने पर ज़मानत का सवाल ही कहा रह जाता है क्योंकि तब तो उसको अपने अपराध की सज़ा काटनी होती है।

अब अगर आप सोच रहे होंगे कि आरोपी को भी क्यों जमानत देती है अदालत। तो आपको बता दूँ की यदि आरोप लगने पर आपको जेल में डाल दिया जाए तो आप अपना बचाव कैसे करेंगे। इसलिए अदालत जमानत देती है और वो भी शर्तो के साथ जिससे आरोपी अपना बचाव कर सके तथा उसके विरुद्ध लगाए गए आरोपो को सिद्ध करके सज़ा दी जा सके।

पुलिस के कह देने भर से या मीडिया के बता देने भर से अगर किसी आरोपी को अपराधी मानकर जेल में डाल दे और जमानत भी ना दे, तो ज़रा सोचिए कि इस व्यवस्था का कितना दुरुपयोग हो सकता है।

नेता अपने विरोधी को, अमीर किसी गरीब को, किसी भी झूठे केस में फ़सायेंगे और जमानत उसको मिलेगी नही और वो जेल में सड़ता रहेगा। और 10 साल बाद वो अदालत से निर्दोष साबित हुआ तब क्या होगा, क्या उसके जीवन के 10 साल उसको वापस मिलेंगे।

इसलिए आपको बता दूँ की जमानत आरोपी को मिलती है अदालत से घोषित अपराधी को नही।

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