अश्वत्थामा को अमरता का वरदान किसने दिया था?

आश्वासथामा के मस्तक मे मणि थी वह गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र था पुत्र के प्रति नितांत मोह और मणि के अभिमान लाड़ प्यार ने उसे बचपन से ही घमंडी बना दिया था तथा अपने पिता को छल से मारे जाने के कारण वह बदले की आग मे नित जल रहा था जब दुर्योधन ने आश्वासथामा को सेनापति बनाया तो दुर्योधन ने उससे कहा की क्या वह पाँच पांडवों का सर काट कर ला सकता है तब उसने दुर्योधन को निश्चय होकर कहा की वह जरूर यह काम कर सकता है

तब एक रात को आश्वसथामा बदले की आग और क्रोध मे इतना अंधा हो गया की उसने द्रौपदी के सोते हुए पांचों पुत्रों का गला काट कर दुर्योधन को दे दिए दुर्योधन प्रसन्नता से उन सिरों को दबाने लगा परंतु ये क्या ये मर्त सर कैसे आशानी से टूट गए सोचकर देखा तो ये बालकों के सर देख कर दुर्योधन आत्मग्लानि से रो पड़ा और बोला ” यह तुमने क्या कीया गुरु भाई बालकों का बध कर दिया और दुर्योधन के प्राण निकल गए उधर जब द्रौपदी सुबह अपने पुत्रों को जगाने के लिए गया तो
अपने पुत्रों को मृत देख कर रुदन करने लगी भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन अन्य पांडव भी रोने लगे तब यह कुकृत्य किसका है सभी जां गए तब अर्जुन आश्वासथामा को घसीटते हुए द्रौपदी के सामने ले आए तब कृष्ण बोले ” ही द्रौपदी इसको दंड देने का अधिकार तेरा है द्रौपदी बोली ‘ कृष्ण इसे क्या दंड दूँ यह गुरु पुत्र है और ब्राह्मण भी , तथा किसी माता का पुत्रभी इसने जो अपराध कीया बाल हत्या का वह अक्षम्य है परंतु एक ब्राह्मण की हत्या हम नहीं कर सकते आप ही बताओ सखा क्या दंड

द्रौपदी दव्वारा आश्वासथामा को क्षमादान

दें इसे ‘ तब श्री कृष बोले पांचाली एक ब्राह्मण की हत्या करने की क्या आवश्यकता भला बस ब्राह्मण का अपमान ही मृत्यु तुलय है हे अर्जुन इसकी मणि निकाल दो और कृष्ण बोले ही आश्वासथामा तुम मणि बिहीन होके जन्मों तक भटकते रहो कहते हैं आज भी आश्वासथामा भटक रहे है मणिविहीन होकर इसलिए वह अमर नहीं बल्कि श्राप भोग रहा है जीवित रह कर जो श्री कृष्ण ने उसे दिया.

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