आखिर महात्मा गाँधी ने अहिंसा का पालन क्यों किया?

अहिंसा का खुद पालन नहीं किया बल्कि केवल दूसरों को पालन करने का उपदेश दिया। और मजा देखिए, भोली जनता उनके झांसे में भी आगयी। जिस तरह ढोंगी बाबा राम रहीम और आशा राम बापू के लाखों समर्थक जुट गए, गांधी के भी लाखों भक्त हो गए। आज की भारतीय जनता उतनी अनपढ़ नहीं है । इसलिए आशाराम बापू और राम रहीम , दोनों ही जेल में बंद हैं । उस समय की जनता इतनी पढ़ि लिखि नहीं थी। इसलिए गांधी की एक आवाज पर जान देने को तैयार हो जाती थी ।

अहिंसक भीड़ पर अंग्रेजों ने कितने जुल्म किए। लाला लाजपतराय की तो इसी में मृत्यु हो गई। लेकिन मजाल है , गांधी को कभी एक खरोंच नहीं आई। क्यों ? सांकेतिक रूप में कभी कभी जेल की पिकनिक कर आते थे।गांधी एक चतुर बनिए की तरह अहिंसा की घुटि पिला पिला कर भोली जनता की भावनाओं को दुहते रहे। लगता है “अहिंसा ” सब्द का उपयोग करके जनता को बेवकूफ बनाने का आइडिया अंग्रेजों का ही था जिससे जितना दिन भी हो सके भारत को अपने गुलामी में रख सकें। और इस आइडिया को बतौर ब्रिटिश एजेंट , गांधी ने बखूबी निभाया। गांधी के पूरे राजनीतिक कैरियर का विश्लेषण कीजिए। उनकी असलियत समझ आ जायेगी।

गांधी को शारीरिक हिंसा से परहेज़ था, लेकिन राजनीतिक हिंसा से उन्हें कतई परहेज नहीं था। वो चाहे भगतसिंह , सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सज़ा में हस्तक्षेप से इंकार करना हो , चंद्रशेखर आजाद को नेहरू से मुखबिरी करवा कर मरवा देना हो,जनरल डायर को कत्ल के चार्ज से बचाने के लिए जनता को समझना हो, सुभाषचन्द्र बोस को जुगाड़ लगा कर कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाना या फिर बहुमत सरदार पटेल के साथ होने के बावजूद नेहरू को प्रधानमंत्री बनाना या फिर प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान लाखों भारतीयों को अंग्रेज़ी हुकूमत की रक्षा के लिए अंग्रेजी सेना में भर्ती के लिए प्रोत्साहित करना हो। कम से कम २५ लाख भारतीय सैनिक अंग्रेजी राज की रक्षा करते हुए बलिदान हो गये। अगर यह २५ लाख अंग्रेज सैनिक कटे होते तो अंग्रेज हुकूमत इतनी कमजोर हो जाती कि हिन्दुस्तान को बहुत पहले ही आजादी मिल जाती।पता नहीं क्यों आज भी लोग इतनी साधारण बात समझने को तैयार क्यों नहीं हैं? यह सब राजनीतिक हिंसा नहीं तो क्या था? बंटवारे के बाद हिंदू शरणार्थियों को अहिंसा की सीख देते रहे लेकिन मुसलमानों की हिंसा के खिलाफ उनके पास विरोध के दो सब्द भी नहीं थे , आंदोलन तो बहुत दूर की बात है। गांधी गर्म दल के लोगों को अपनी किंग मेकर राजनीति के लिए प्रतिद्वंद्वी मानते थे।

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