आजादी के इतने साल बाद भी भारत में किस ट्रैक पर रेल चलाने के लिए रेल मंत्रालय को इंग्लैंड को पैसे देने पड़ते है?

आपको जानकर हैरानी होगी पर आज भी आजादी के इतने सालों बाद भी भारत को इस ट्रैक पर ट्रैन चलाने के पैसे ब्रिटिश कंपनी को देने पड़ते है इसका कारण है यह ट्रैक आज भी ब्रिटिश कंपनी के पास है

यह नैरोगेज ट्रैक महाराष्ट्र प्रांत में है और अमरावती से मुर्तजापुर के बीच बिछी है. इसकी कुल लंबाई 189 किलोमीटर है. इस ट्रैक पर सिर्फ एक पैसेंजर ट्रेन चलती है जो सफर को 6-7 घंटे में पूरा करती है. इस सफर के दौरान शकुंतला एक्सप्रेस अचलपुर और यवतमाल समेत 17 छोटे-बड़े स्टेशनों पर रुकती है.

100 साल पुरानी 5 डिब्बों वाली यह ट्रेन पहले स्टीम इंजन से चला करती थी और साल 1994 से यह स्टीम इंजन के बजाय डीजल इंजन से चलती है. इस रेल रूट पर लगे सिग्नल आज भी ब्रिटिशकालीन ही हैं. 5 बोगी वाली इस पैसेंजर ट्रेन में प्रतिदिन एक हजार से अधिक लोग यात्रा करते हैं

अमरावती का यह इलाका कभी कपास के लिए पूरे देश में मशहूर हुआ करता था. तब वहां उपजे कपास को मुंबई पोर्ट तक पहुंचाने के लिए अंग्रेजों ने इसे बनवाया था. साल 1903 में ब्रिटिश कंपनी क्लिक निक्सन ने इस रेल ट्रैक को बिछाने की शुरुआत की थी और यह काम 1916 में पूरा हुआ था.

इस रूट पर चलने वाली शकुंतला एक्सप्रेस की वजह से इसे शकुंतला रेल रूट के नाम से भी जाना जाता है. इस कंपनी को अब सेंट्रल प्रोविन्स रेलवे कंपनी के नाम से जाना जाता है.

अब इस बात से तो सभी वाकिफ हैं कि साल 1951 में रेल का राष्ट्रीयकरण हो गया लेकिन यह रूट भारत सरकार के जद में नहीं आया. आज भी इस रेल रूट के एवज में भारत सरकार हर साल इस कंपनी को 1 करोड़ 20 लाख रुपये की रॉयल्टी ब्रिटिश कंपनी को देती है।

इस ट्रैक के देख-रेख और संरक्षण का काम आज भी ब्रिटेन की कंपनी करती है. वैसे तो भारत सरकार हर साल उन्हें पैसे देती है लेकिन इसके बावजूद यह ट्रैक बेहद खस्ताहाल है. पिछले 60 सालों से इसकी मरम्मत तक नहीं हुई है. इस ट्रैक पर चलने वाले जेडीएम सीरीज के डीजल लोको इंजन की अधिकतम स्पीड आज भी 20 किलोमीटर प्रति घंटे रखी जाती है.

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