इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और इलेक्ट्रीशियन में क्या फर्क होता है? जानिए
इलेक्ट्रीशियन – ओके सर। मैंने सभी रिले को रीसेट कर दिया है। अब आप कमांड दीजिए और सर्किट ब्रेकर को बंद कीजिए।
इंजीनियर कमांड देता है। लेकिन यह क्या ! ब्रेकर बंद नहीं हुआ। सामने से अलार्म आया कि ब्रेकर ट्रिप हो गया। इंजीनियर के चेहरे पर चिंता की लकीरें।
इंजीनियर – ये कैसे हुआ? सब कुछ तो ठीक था न।
इलेक्ट्रीशियन – सर चेक करना पड़ेगा, क्या प्रॉब्लम है।
इंजीनियर – ठीक है। तुम सारा समान लेकर साइट पर पहुंचो। दो चार को बुला लो। मैं तुरंत साइट पर पहुंचता हूं।
सभी इलेक्ट्रीशियन यार्ड में जाते हैं। थोड़ी देर में इंजीनियर ड्राइंग लेकर पहुंचता है।
इलेक्ट्रीशियन (कुछ चेक करते हुए) – सर दो फेज का ब्रेकर सही से बंद नहीं हुआ। तीसरा वाला ब्रेकर सही है।
इंजीनियर – ओके कितना वक्त लगेगा?
इलेक्ट्रीशियन – सर कम से कम दो घंटे लगेंगे सही करने में।
इंजीनियर – अच्छा ये ड्राइंग लो। इसके अनुसार सर्किट को चेक करो।
इलेक्ट्रीशियन – सर इसकी जरूरत नहीं है।
इंजीनियर – पागल हो क्या। बिना ड्राइंग के कैसे काम करोगे?
इलेक्ट्रीशियन – सर अनुभव है। दस साल से यही कर रहे हैं।
दो घंटे तक इंजीनियर साइट पर खड़ा रहता है। वह लगातार मॉनिटर कर रहा है और साथ ही सुरक्षा मानकों का भी पालन कर रहा है।
थोड़ी देर बाद
इलेक्ट्रीशियन – सर हो गया। अब आप लाइन को फिर से चार्ज कीजिए। पहले आइसोलेटर लगा दीजिए। फिर ब्रेकर को बंद कीजिए।
इंजीनियर – ऐसा क्यों?
इलेक्ट्रीशियन– सर हमेशा से यही होता आया है। ऐसा क्यों करते हैं मुझे पता नहीं।
इंजीनियर – तुम्हे नहीं पता। ऐसा इसलिए करते हैं ताकि आइसोलेटर के बाद में लगाने पर बहुत ज्यादा स्पार्किंग हो सकती है जिससे ये सिस्टम ही खराब हो जाएगा।
फिर इंजीनियर लाइन को चार्ज करता है। सब कुछ ठीक रहता है और लाइन चार्ज हो जाती है।
अब आप ऊपर हुए संवाद से एक इंजीनियर और एक इलेक्ट्रीशियन के फर्क को समझ सकते हैं। इंजीनियर के पास निश्चित रूप से ज्ञान अधिक होता है और अधिक अच्छी तरह से सिस्टम की व्याख्या कर सकता है। वहीं इलेक्ट्रीशियन को ज्ञान भले ही न हो लेकिन उसके पास अनुभव होता है और यही कारण है कि वह इंजीनियर की अपेक्षा अधिक दक्ष होता है।
नोट – यह संवाद काल्पनिक नहीं है।