इस 18 साल के लड़के ने किया ऐसा कमाल, ‘रतन टाटा’ को बनाया बिज़नेस पार्टनर, जानिए कैसे
उम्र चाहे छोटी हो बड़ी लेकिन अगर इंसान में कुछ करने का जज्बा हो तो हर मुश्कील भी आसान हो जाती है ऐसा ही एक कारनामा कर दिखाया सिर्फ 18 साल के एक लड़के ने जिसने देश की एक ऐसी हस्ती को अपने पर्स आने को मजबूर कर दिया जिनसे मिलने भर के लिए लोगों को ना जाने कितने दिनों का इंतज़ार करना पड़ता है। महाराष्ट्र के रहने वाले 18 साल के अर्जुन देशपांडे ओर उनकी कंपनी ‘जेनरिक आधार’ देश मे चर्चा में बनी हुई है।
अर्जुन देशपांडे ने जब अपनी एक छोटी सी कंपनी की शुरुआत की तो उनकी इस कंपनी में जाने माने उद्योगपति रतन टाटा ने दो साल पहले बनी कंपनी में व्यक्तिगत तौर पर निवेश ही कर डाला। इतने कम समय मे इतने बड़े उद्योगपति का साथ पा लेना शायद इससे बड़ी उपलब्धि किसी भी व्यक्ति के लिए इस दुनिया मे नही हो सकती। रतन टाटा का साथ मिलना अर्जुन देशपांडे को एक अपार सफलता की ओर अग्रसर करती है।
अर्जुन का कहना हैं, “जेनरिक दवाओं की पहुंच लोगों तक बनाने के लिए ये सबसे सुनहरा मौका है। रतन टाटा जी भी किफ़ायती स्वास्थ्य सुविधाओं के हमेशा से हिमायती रहे हैं। ऐसे में हमें जल्द से जल्द अपने इस लक्ष्य को पूरा करना है.”। अर्जुन देशपांडे जेनरिक आधार के संस्थापक और सीईओ हैं। वह खुद महाराष्ट्र में ठाणे के रहने वाले हैं और उनकी कंपनी भी ठाणे में ही है।
जेनरिक आधार एक ऐसी कंपनी है जिसमें दवाइयों का खुदरा कारोबार किया जाता है। इस कंपनी में दवाओं की प्रक्रिया में दवाओं के निर्माताओं से खरीद कर छोटे छोटे मेडिकल स्टोर्स तक पहुंचाना है। कंपनी सरकार द्वारा प्रमाणित निर्माण इकाई में तैयार होने वालीं जेनरिक, ब्रांडेड, होम्योपैथी और आयुर्वेद दवाएं भी उपलब्ध कराती है। अर्जुन देशपांडे कहते हैं उनकी कंपनी 80 प्रतिशत कम दामों पर दवा उपलब्ध कराती है। यही वो वजह रही जिससे रतन टाटा जैसे उद्योगपति भी इस कंपनी में निवेश करने से नही रोक पाए।
अर्जुन देशपांडे का कहना हैं कि दवाओं की मार्केटिंग और ब्रांडिंग से उनकी क़ीमत बढ़ जाती है. ऐसे में हम जेनरिक दवाओं पर ज़ोर देते हैं जो लोगों को किफ़ायती दरों पर उपलब्ध हो सकती है।
अर्जुन ने यह भी बताया कि सभी दवाएं एक तरह का ‘केमिकल सॉल्ट’ होती हैं जिन्हे शोध के बाद अलग-अलग बीमारियों के लिए बनाया जाता है। जेनेरिक दवाएं हैं वो सस्ती होती हैं क्योंकि उनकी ब्रांडिंग पर ख़र्चा नहीं होता। लेकिन, जो कंपनियां इन दवाओं का ब्रांड बनाकर बेचती हैं, वो महंगी होती हैं।
आज के दौर में छोटे दुकानदारों को ऑनलाइन बिक्री और बडे दुकानदारों से कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए ये कंपनी छोटे दुकानदारों ओर हर व्यक्ति की ओएहमच तक इन सस्ती दवाओं को पहुंचना चाहती है। ताकि देश मे स्वास्थ सेवाओं में सुखार भी किया जा सके।