उज्जैन में स्थित काल भैरव मंदिर की कुछ चोकाने वाले तथ्य क्या है?

क्या मूर्ति मदिरापान कर सकती…आप कहेंगे नहीं, कतई नहीं। भला मूर्ति कैसे मदिरापान कर सकती है। मूर्ति तो बेजान होती है। बेजान चीजों को भूख-प्यास का अहसास नहीं होता, इसलिए वह कुछ खाती-पीती भी नहीं है। लेकिन उज्जैन के काल भैरव के मंदिर में ऐसा नहीं होता। वाम मार्गी संप्रदाय के इस मंदिर में काल भैरव की मूर्ति को न सिर्फ मदिरा चढ़ाई जाती है, बल्कि बाबा भी मदिरापान करते हैं ।

काल भैरव का यह मंदिर लगभग छह हजार साल पुराना माना जाता है। यह एक वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर है। वाम मार्ग के मंदिरों में मांस, मदिरा, बलि, मुद्रा जैसे प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। प्राचीन समय में यहां सिर्फ तांत्रिकों को ही आने की अनुमति थी। वे ही यहां तांत्रिक क्रियाएं करते थे और कुछ विशेष अवसरों पर काल भैरव को मदिरा का भोग भी चढ़ाया जाता था। कालान्तर में ये मंदिर आम लोगों के लिए खोल दिया गया, लेकिन बाबा ने भोग स्वीकारना यूं ही जारी रखा।

अब यहां जितने भी दर्शनार्थी आते हैं, बाबा को भोग जरूर लगाते हैं। मंदिर के पुजारी गोपाल महाराज बताते हैं कि यहां विशिष्ट मंत्रों के द्वारा बाबा को अभिमंत्रित कर उन्हें मदिरा का पान कराया जाता है, जिसे वे बहुत खुशी के साथ स्वीकार भी करते हैं और अपने भक्तों की मुराद पूरी करते हैं।

काल भैरव के मदिरापान के पीछे क्या राज है, इसे लेकर लंबी-चौड़ी बहस हो चुकी है। पीढ़ियों से इस मंदिर की सेवा करने वाले राजुल महाराज बताते हैं, उनके दादा के जमाने में एक अंग्रेज अधिकारी ने मंदिर की खासी जांच करवाई थी। लेकिन कुछ भी उसके हाथ नहीं लगा…उसने प्रतिमा के आसपास की जगह की खुदाई भी करवाई, लेकिन नतीजा सिफर। उसके बाद वे भी काल भैरव के भक्त बन गए। उनके बाद से ही यहां देसी मदिरा को वाइन उच्चारित किया जाने लगा, जो आज तक जारी है।

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