उर्दू एक लिखित भाषा के रूप में कब आई?
सल्तनत काल(1206 – 1526ई.) में या उससे थोड़ा पहले तुर्कों और हिन्दुओं के आपसी संपर्क के फलस्वरूप जिस बोलचाल की भाषा का विकास हुआ,वही ‘उर्दू’ या ‘छावनियों और बाजारों की भाषा’ के नाम से जानी जाने लगी।लगभग 200 वर्षों तक यह बोलचाल की भाषा ही रही।इसने लिखित भाषा का रूप 14वी सदी के प्रथम चतुर्थांश में ही ग्रहण किया।इसका प्रारंभिक नाम ‘जबान-ए-हिन्दवी’ था।उर्दू नाम बाद में पड़ा।
अमीर खुसरो हिंदी के साथ- साथ उर्दू के भी प्रसिद्ध कवि थे।उर्दू का व्यापक प्रचलन 18वी सदी में हुआ।मुहम्मद शाह (1718-48) प्रथम मुगल बादशाह था जिसने कि दक्षिण के सुप्रसिद्ध कवि शमशुद्दीन वली को अपने दरबार में कविताएं सुनाने हेतु आमंत्रित कर उर्दू को प्रोत्साहित किया था। ‘रेखता’ उर्दू की प्रथम कविता थी।
इस प्रकार 18वी सदी के मध्य से उर्दू ने फारसी-काव्य का कलेवर एवं परम्परायें अपना ली थी।मीर तकी,मीर ख्वाजा,मीर दर्द, सौदा,सोज आदि प्रमुख उर्दू कवि थे।इन कवियों ने उर्दू को और अधिक परिष्कृत और सुसंस्कृत बनाया तथा इसके शब्दकोश में वृद्धि की।मीर अत्यंत श्रेष्ठ गीतकार थे।मीर हसन सर्वश्रेष्ठ ‘मसनवी’ लेखक थे।यह समय उर्दू कविता के लिए स्वर्णिम युग था। 19वी सदी के मध्य में यह अदालती भाषा बन गयी और महत्वपूर्ण भाषा के रूप में लोकप्रिय हुई।