कुंभ मेला क्यों इतना महत्वपूर्ण है ? जानिए
कुम्भ मेला दो शब्दो से बना है , कुम्भ यानि की अमृत का घड़ा और मेला का मतलब आप जानते ही है।
जब देवता राक्षसो से भाग रहे थे, तब के कुछ बूंदे पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरे। यह चार स्थान है प्रयागराज, हरिद्वार , उज्जैन और नाशिक। अमृत के बूँदें हरिद्वार पर छठे दिन गिरे,प्रयागराज पर ९वे दिन गिरे और नासिक एवं उज्जैन पर १२वे दिन गिरे। इसी लिए , कुम्भ मेला नाशिक और उज्जैन एक ही साल या ६ महीने के अंतराल पर मनाया जाता है जब की हिरद्वार और प्रयागराज में ६ और ३ साल के अंतराल पर मनाया जाता है। निचे पिछले कुछ कुम्भ मेला का वर्णन है।
१९८० : नाशिक
१९८०: उज्जैन
१९८६ : हरिद्वार
१९८९ : प्रयागराज
१९९२ : नाशिक
१९९२: उज्जैन
१९९८: हरिद्वार
२००१ : प्रयागराज
२००३ : नाशिक
२००४ : उज्जैन
२०१० : हरिद्वार
२०१3: प्रयागराज
२०१५ : नाशिक
२०१६ : हरिद्वार
२०१९ :प्रयागराज
देवताओं के गृह पर एक दिन मनुष्य के १ साल के बराबर होता है। इसलिए, देवताओं का १२ दिन मनुष्य का १२ साल होता है। इसलिए, कुम्भ मेला हर बारह साल में एक बार चार स्थानों पर मनाया जाता है
हमारे बुद्ध जीवियो ने यह कहा था की बारह साल में मौसमी और पार्थिव स्थिति इस तरह बन जाती है की चार नदियों का पानी अमृत बन जाता है। इन चार स्थानों को कुम्भ मेला के दौरान देवताओं का आश्रीवाद मिलता है। इसलिए इस समय गंगा और अन्य नदिया में डुबकी लगाने से सारे पाप धूल जाते है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह चार नदिया है
१) गंगा ,यमुना और सरस्वती का पावन त्रिवेणी संगम
२) हरिद्वार की माँ गंगा
३) नाशिक की गोदावरी नदी
४) उज्जैन की शिप्रा नदी